
नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को राजस्व विभाग के कब्जे में मौजूद चिन्हित वन भूमि को तीन महीने के भीतर वन विभाग को सौंपने का सख्त निर्देश दिया है। यह आदेश पुणे के कोंढवा बुद्रुक में आरक्षित वन क्षेत्र के अवैध आवंटन से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान दिया गया।
राजनेता, अधिकारी और बिल्डरों की साठगांठ उजागर
88 पन्नों के विस्तृत फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला उन राजनीतिक-प्रशासनिक गठजोड़ का उदाहरण है, जिनमें कीमती वन भूमि को व्यावसायिक हितों के लिए अवैध रूप से परिवर्तित किया गया। कोर्ट ने इसे “सार्वजनिक विश्वास का घोर उल्लंघन” करार दिया और कहा कि पिछड़े वर्ग के पुनर्वास के नाम पर जंगलों का दोहन हुआ।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने फैसले में स्पष्ट किया कि कैसे तत्कालीन राजस्व मंत्री और संभागीय आयुक्त ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारियों को दरकिनार कर वन भूमि का गलत आवंटन किया।
राज्यों को SIT गठन का निर्देश
शीर्ष अदालत ने देशभर के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि वे विशेष जांच टीम (SIT) का गठन करें, जो यह जांच करेगी कि कहीं वन भूमि का अवैध आवंटन निजी संस्थाओं या व्यक्तियों को तो नहीं किया गया। साथ ही राज्य सरकारों को यह भी कहा गया है कि वे ऐसी जमीनों की पहचान कर एक वर्ष के भीतर वन विभाग को सौंपना सुनिश्चित करें।
अवैध आवंटन और पर्यावरण मंज़ूरी रद्द
कोर्ट ने पुणे के कोंढवा बुद्रुक में 11.89 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि को कृषि कार्य के लिए दिए गए आवंटन को पूरी तरह अवैध ठहराया है, जिसे बाद में रॉयल रेसिडेंशियल को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी (RRRCHS) को बेच दिया गया था। इतना ही नहीं, 2007 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई पर्यावरण मंजूरी को भी रद्द कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के प्रमुख बिंदु:
- तीन महीने में सभी चिन्हित वन भूमि वन विभाग को सौंपी जाए।
- सभी राज्यों में SIT गठित कर अवैध आवंटन की जांच हो।
- पिछली सरकारों की भूमिकाओं की विस्तृत जांच की जाए।
- एक साल में सभी वन भूखंडों की पहचान और हस्तांतरण पूरा हो।
न्यायपालिका का स्पष्ट संदेश
यह फैसला एक स्पष्ट संदेश है कि वन भूमि के अवैध व्यापार और राजनीतिक-प्रशासनिक मिलीभगत को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट की यह पहल पर्यावरण संरक्षण, न्यायिकपारदर्शिता और प्रशासनिक जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।