
तमिलनाडु में समुद्र तटीय रेत खनन से जुड़े ₹5,832.29 करोड़ के कथित घोटाले को लेकर केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने बड़ी कार्रवाई की है। मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश पर CBI ने शनिवार को तीन तटीय जिलों – तिरुनेलवेली, तूतीकोरिन और कन्याकुमारी – में 12 स्थानों पर छापेमारी की। इसके बाद रविवार को CBI ने 21 व्यक्तियों और 6 कंपनियों के खिलाफ 7 आपराधिक मामले दर्ज किए।
2000 से 2017 के बीच हुआ अवैध खनन, सरकार को हुआ भारी नुकसान
CBI द्वारा दर्ज मामलों में आरोप है कि वर्ष 2000 से 2017 के बीच इन जिलों में समुद्र तटीय रेत खनन, उसका अवैध परिवहन और निर्यात किया गया। इसके चलते सरकार को खनिज लागत और रॉयल्टी के मद में 5832.29 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
CBI की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस अवधि के दौरान MMDR अधिनियम, 1957 और परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन किया गया। आरोपियों में खनन कंपनियों के निदेशक, साझेदार, अज्ञात लोक सेवक और निजी व्यक्ति शामिल हैं, जिन्होंने कथित रूप से आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, पद के दुरुपयोग और चोरी जैसे गंभीर अपराधों को अंजाम दिया।
लोक सेवकों पर कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप
जांच में यह भी सामने आया कि लोक सेवकों ने अपने पद का दुरुपयोग कर खनन कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाया। यह साजिश सार्वजनिक संपत्ति की खुली लूट और सरकारी तंत्र की गंभीर लापरवाही को दर्शाती है।
CBI ने तलाशी अभियान के दौरान महत्वपूर्ण दस्तावेज और आपत्तिजनक सामग्री जब्त की है, जो जांच में आगे उपयोगी साबित हो सकते हैं।
हाईकोर्ट ने दिया था विशेष जांच दल (SIT) बनाने का आदेश
इस पूरे मामले में 17 फरवरी, 2025 को मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि CBI उच्च निष्ठा वाले अधिकारियों का विशेष जांच दल गठित करे, जो तथ्यात्मक रूप से पूरी सच्चाई सामने ला सके।
कोर्ट ने कहा था कि:
- तटीय रेत खननकर्ताओं की कार्यप्रणाली की गहन जांच होनी चाहिए।
- घोटाले में सरकारी अधिकारियों की भूमिका की जांच हो।
- राज्य सरकार को हुए वित्तीय नुकसान का आकलन किया जाए।
इसके साथ ही, भारत सरकार को निर्देशित किया गया कि संबंधित खनन कंपनियों के वित्तीय और व्यापारिक लेन-देन की छानबीन की जाए, और मामला प्रवर्तन निदेशालय (ED), आयकर विभाग, सीमा शुल्क एवं उत्पाद शुल्क विभाग और वाणिज्यिक कर विभाग को सौंपा जाए।
क्या कहती है यह कार्रवाई?
CBI की यह कार्रवाई एक ओर जहां खनन माफिया और सरकारी संरक्षण के गठजोड़ को उजागर करती है, वहीं यह भारत में खनिज संसाधनों के संरक्षण और पारदर्शिता को लेकर बड़ी चेतावनी भी है।