Saturday, July 5, 2025
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अजमेर शरीफ दरगाह पर पीएम मोदी की चादर चढ़ाने को लेकर राजनीति गरमाई, विपक्ष का तंज

 Pm narendr modi Ajmer Sharif Dargah: अजमेर शरीफ दरगाह में 813वें उर्स के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से चादर चढ़ाई जाएगी। इस परंपरा को निभाने के लिए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू 4 जनवरी को दरगाह पहुंचेंगे और पीएम की चादर चढ़ाएंगे। हालांकि, इस कदम पर आम आदमी पार्टी (AAP) और अन्य विपक्षी दलों ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर तंज कसा है।

बीजेपी पर AAP का कटाक्ष: “क्या बीजेपी बदल रही है?”

आम आदमी पार्टी ने सवाल उठाया है कि क्या भारतीय जनता पार्टी अपनी विचारधारा में बदलाव कर रही है। पीएम मोदी की इस चादर को लेकर विपक्ष का कहना है कि यह उनकी नई रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

दरगाह प्रमुख का स्वागत और परंपरा का जिक्र

अजमेर दरगाह प्रमुख नसीरुद्दीन चिश्ती ने प्रधानमंत्री की चादर चढ़ाने की पहल का स्वागत करते हुए इसे देश की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा, “1947 से अब तक हर प्रधानमंत्री ने ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर चादर भेजी है। पीएम मोदी भी 2014 से इस परंपरा को निभा रहे हैं, जो देश की संस्कृति और सभ्यता को दर्शाता है।”

अजमेर शरीफ: सूफी आस्था का प्रतीक

अजमेर शरीफ दरगाह भारत की सबसे प्रसिद्ध सूफी स्थलों में से एक है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स को उनके निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस साल 28 दिसंबर से 813वें उर्स का आयोजन शुरू हुआ, जिसमें देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु शामिल हुए।

चादर चढ़ाने की परंपरा और राजनीतिक संदेश

दरगाह पर चादर चढ़ाना भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था का प्रतीक है। लेकिन इस बार यह परंपरा राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गई है। जहां दरगाह प्रमुख ने इसे आस्था और परंपरा का हिस्सा बताया, वहीं विपक्ष ने इसे बीजेपी की कथित “छवि सुधार” की रणनीति कहा।

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह का महत्व

उर्स के दौरान ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर लाखों श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर आते हैं। यह आयोजन धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। चादर चढ़ाने की यह परंपरा न केवल आस्था का प्रतीक है बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब का भी उदाहरण है।

प्रधानमंत्री की इस चादर के जरिए एक ओर सांस्कृतिक परंपरा को निभाया जा रहा है, वहीं विपक्ष इसे राजनीति का हिस्सा बता रहा है। अब देखना यह है कि इस धार्मिक पहल का राजनीतिक प्रभाव कितना गहरा होता है।

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