
Arvind Kejriwal aap delhi elections 2025: आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए अब तक 31 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं, जिनमें से 18 मौजूदा विधायकों को टिकट से वंचित कर दिया गया है। यह पहली बार है जब पार्टी ने इतने बड़े पैमाने पर अपने पुराने चेहरों को बदलने का फैसला किया है। इस कदम को अरविंद केजरीवाल की नई चुनावी रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, जो बीजेपी के सफल ‘नो-रिपीट’ मॉडल से प्रेरित है।
पुराने चेहरों की जगह नए चेहरे क्यों?
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की हर सीट पर सर्वे कराया और जनता की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवारों का चयन किया। पार्टी का मानना है कि मौजूदा विधायकों के खिलाफ पनप रही असंतोष की भावना को खत्म करने के लिए नए चेहरे उतारना जरूरी है। केजरीवाल के इस कदम से स्पष्ट है कि वे सत्ता विरोधी लहर (एंटी-इनकंबेंसी) को हर हाल में काबू में रखना चाहते हैं।
बीजेपी की तर्ज पर नया प्रयोग
बीजेपी ने ‘नो-रिपीट’ रणनीति का सफलतापूर्वक इस्तेमाल गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में किया है। आम आदमी पार्टी इसी मॉडल को दिल्ली में लागू कर रही है। पार्टी ने पिछले चुनावों में कुछ सीटों पर उम्मीदवार बदले थे, लेकिन इस बार यह संख्या पहले से अधिक है।
क्या है राजनीतिक गणित?
अरविंद केजरीवाल इस बार अपने उम्मीदवारों का चयन जातिगत समीकरणों और स्थानीय जनाधार को ध्यान में रखते हुए कर रहे हैं। दूसरी सूची में पार्टी ने नए चेहरों को मौका दिया है, जिनमें से कई पूर्व कांग्रेसी और बीजेपी नेता भी हैं। यह दिखाता है कि पार्टी अपने पारंपरिक वोट बैंक के साथ अन्य दलों के समर्थकों को भी साधने की कोशिश कर रही है।
मौजूदा विधायकों की बेचैनी
पार्टी के इस फैसले से मौजूदा विधायकों के बीच असमंजस और नाराजगी का माहौल है। कई विधायक जो लगातार तीन या चार बार चुनाव जीत चुके हैं, उन्हें इस बार टिकट न मिलने की आशंका है। यह रणनीति पार्टी के भीतर गुटबाजी को भी बढ़ा सकती है।
क्या यह रणनीति सफल होगी?
2020 के विधानसभा चुनावों की तुलना में इस बार आम आदमी पार्टी को चुनौतीपूर्ण माहौल का सामना करना पड़ सकता है। पार्टी के पास एक मजबूत जनाधार तो है, लेकिन एंटी-इनकंबेंसी और एमसीडी चुनावों में कमजोर प्रदर्शन को देखते हुए यह देखना होगा कि ‘नो-रिपीट’ फार्मूला कितना प्रभावी साबित होता है।
अंत में…
दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य में अरविंद केजरीवाल का यह कदम एक साहसिक प्रयोग है। जहां एक ओर यह पार्टी के लिए नए अवसर पैदा कर सकता है, वहीं यह जोखिम भरा भी हो सकता है। दिल्ली की जनता और कार्यकर्ताओं के बीच इस फैसले का स्वागत होगा या विरोध, यह चुनाव परिणाम तय करेंगे।