
महाराष्ट्र में हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजों को लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। एनसीपी (शरद पवार गुट) प्रमुख शरद पवार ने चुनाव परिणामों पर सवाल उठाते हुए कहा कि विपक्षी दलों को वोट तो ज्यादा मिले, लेकिन सीटें अपेक्षाकृत कम मिलीं। इस आरोप पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कड़े शब्दों में पलटवार किया और आंकड़ों के जरिए शरद पवार को “आत्मनिरीक्षण” करने की नसीहत दी।
फडणवीस का पलटवार: लोकसभा के आंकड़े गिनाए
फडणवीस ने शरद पवार के आरोपों को खारिज करते हुए 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों के आंकड़े पेश किए। उन्होंने कहा,
“यदि अधिक वोट पाने के बावजूद सीटें कम मिल रही हैं, तो यह केवल महाराष्ट्र का मुद्दा नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 1.49 करोड़ वोट मिले और 9 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस को 96 लाख वोटों के साथ 13 सीटें मिलीं। शिवसेना को 73 लाख वोट मिले और 7 सीटें मिलीं। वहीं, शरद पवार के एनसीपी गुट को 58 लाख वोट मिले और 8 सीटें मिलीं।”
फडणवीस ने 2019 लोकसभा का उदाहरण भी दिया:
“कांग्रेस को 87 लाख वोटों के बावजूद केवल 1 सीट मिली थी, जबकि एनसीपी को 83 लाख वोटों के साथ 4 सीटें मिली थीं। हार स्वीकार करना ही आगे बढ़ने का सही तरीका है।”
महाविकास अघाड़ी की हार और ईवीएम पर सवाल
विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी को करारी हार का सामना करना पड़ा, जहां गठबंधन ने केवल 50 सीटें जीतीं। दूसरी ओर, महायुति ने 231 सीटें हासिल कर प्रचंड बहुमत दर्ज किया। हार के बाद विपक्ष ने ईवीएम पर संदेह जताना शुरू कर दिया।
शरद पवार ने इस मुद्दे पर कहा,
“चुनाव के बाद एक उत्साह का माहौल बनता है, लेकिन महाराष्ट्र में यह उत्साह दिखाई नहीं देता। हालांकि, आरोप लगाने के लिए मेरे पास कोई सबूत नहीं है, लेकिन वोट और सीटों के अनुपात में बड़ा अंतर है।”
शरद पवार के आंकड़े और सवाल
शरद पवार ने आंकड़ों के आधार पर कहा कि कांग्रेस को 80 लाख वोट मिले और केवल 15 विधायक चुने गए, जबकि शिंदे गुट को 79 लाख वोटों के साथ 57 विधायक मिले। एनसीपी-शरद पवार गुट को 72 लाख वोट मिले, लेकिन उनके सिर्फ 10 उम्मीदवार जीत सके।
उन्होंने आगे कहा,
“अजित पवार गुट को 58 लाख वोट मिले और उनके 41 उम्मीदवार निर्वाचित हुए। यह आंकड़े आश्चर्यजनक हैं और इनकी गंभीरता से जांच होनी चाहिए।”
चुनावी परिणामों का असमान अनुपात और राजनीति
महाराष्ट्र के चुनावी परिणामों ने राजनीतिक पंडितों के बीच बहस छेड़ दी है। विपक्ष जहां चुनाव प्रक्रिया और वोट-सीट अनुपात पर सवाल उठा रहा है, वहीं सत्ता पक्ष इन आरोपों को नकारते हुए विपक्ष को आत्मनिरीक्षण की सलाह दे रहा है।
क्या यह असमानता चुनावी गणित का हिस्सा है, या इसके पीछे कोई गहरी वजह है? यह सवाल अब जनता और राजनीतिक दलों के बीच चर्चा का मुख्य विषय बन गया है।