नई दिल्ली/मालेगांव: साल 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम विस्फोट मामले में लगभग 17 साल बाद विशेष NIA अदालत ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया। जिनमें भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पूर्व सैन्य अधिकारी कर्नल श्रीकांत पुरोहित प्रमुख थे। अदालत के इस फैसले के तुरंत बाद, महाराष्ट्र ATS से सेवानिवृत्त पुलिस इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए दावा किया कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत को “फंसाने” के निर्देश दिए गए थे।
“भगवा आतंकवाद एक राजनीतिक मिथ था”
मुजावर ने साफ कहा, “भगवा आतंकवाद की पूरी थ्योरी झूठी और गढ़ी गई थी। मुझे इस केस में शामिल किया गया था ताकि इस विचारधारा को पुष्ट किया जा सके और शीर्ष हिंदू संगठनों को इसमें घसीटा जा सके। मुझे मोहन भागवत को गिरफ्तार करने और उन पर आरोप तय करने के निर्देश मिले थे।”
उन्होंने आरोप लगाया कि तत्कालीन जांच अधिकारी परमबीर सिंह और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें यह आदेश दिए थे, जिनका उद्देश्य आरएसएस को इस हमले से जोड़ना था।
“मरे हुए लोगों को चार्जशीट में जिंदा दिखाया गया”
मुजावर ने यह भी आरोप लगाया कि इस केस में फर्जीवाड़ा की सारी हदें पार कर दी गई थीं। उन्होंने दावा किया कि दो संदिग्ध – रामजी कलसंगरा और संदीप डांगे, जिनकी पहले ही मृत्यु हो चुकी थी, उन्हें जानबूझकर चार्जशीट में “जिंदा” दिखाया गया और उनकी लोकेशन ट्रैक करने के आदेश दिए गए।
“जब मैंने इस साजिश का विरोध किया, तो मुझे सस्पेंड कर दिया गया और मेरे खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज किए गए,” – महबूब मुजावर
“आदेशों को मानना असंभव था”
मुजावर के अनुसार, उन्हें जिन आदेशों का पालन करने को कहा गया, वे “भयावह” और “अवास्तविक” थे। उन्होंने कहा, “मैं एक पुलिस अधिकारी था, न कि किसी राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा। ऐसे निर्देशों को मानना मेरी क्षमता से बाहर था। जब मैंने इनकार किया, तो मेरी 40 साल की सेवा को कलंकित करने की कोशिश की गई।”
अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया
पूर्व अधिकारी ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा, “मुझे खुशी है कि सभी निर्दोष बरी हुए। अदालत के इस निर्णय ने ATS की उस फर्जी जांच को नकार दिया, जिसके तहत निर्दोषों को सालों तक जेल में रखा गया।”
उन्होंने पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को भी घेरा और सवाल किया कि क्या वे आज भी “हिंदू आतंकवाद” की थ्योरी पर कायम हैं।
NIA ने लिया केस, बदली दिशा
गौरतलब है कि इस केस की शुरुआती जांच महाराष्ट्र ATS ने की थी, लेकिन बाद में यह केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया, जिसने विस्तृत जांच के बाद सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को दोषमुक्त घोषित किया।
क्या था मालेगांव ब्लास्ट केस?
29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए धमाके में 6 लोगों की मौत और 101 घायल हुए थे। शुरुआती जांच में धमाके को कथित तौर पर “हिंदू संगठनों” से जोड़ा गया और कई विवादास्पद गिरफ्तारियां की गईं, जिसमें साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित जैसे नाम शामिल थे।
अब क्या सवाल उठ रहे हैं?
क्या मालेगांव ब्लास्ट केस राजनीतिक प्रेरणा से प्रभावित था?
भगवा आतंकवाद का विचार गढ़ा गया था या इसके पीछे ठोस तथ्य थे?
क्या जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया?
इन सवालों पर देशभर में फिर से बहस शुरू हो चुकी है। और मुजावर के खुलासों ने इस बहस को और तीखा बना दिया है।