गुवाहाटी — लोकप्रिय असमिया गायक जुबिन गर्ग की मृत्यु को लेकर बढ़ते राजनीतिक विवाद में प्रदेश के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और कांग्रेस नेता गौरव गोगोई आमने-सामने आ गए हैं। मामला जांच के दायरे से बाहर निकल कर राजनीतिक टकराव बन गया है और दोनों नेताओं के आवेशपूर्ण बयानों के बाद दाख़िलों व पूछताछों की प्रक्रिया तेज हो गई है।
सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने चेतावनी दी है कि जो लोग जुबिन गर्ग के मामले में लोगों को भड़का रहे हैं, उनके खिलाफ सरकार पुलिस में FIR दर्ज कराएगी और यदि किसी विपक्षी नेता का नाम सामने आता है तो उसका भी उल्लेख किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें भरोसा है कि इस मामले में कांग्रेस नेता गौरव गोगोई से भी पूछताछ की जाएगी।
दूसरी तरफ, असम प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष गौरव गोगोई ने मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया कि वे जांच में बाधा डाल रहे हैं और ध्यान भटकाने वाले बयान देकर मामले को राजनीति की ओर मोड़ रहे हैं। गोगोई का कहना है कि असम की जनता केवल सत्य जानना चाहती है और_cm_ के कुछ बयानों से ऐसा प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री आयोजनकर्ता श्यामकानु महंत को बचाने का प्रयास कर रहे हैं — महंत वही व्यक्ति हैं जिन्होंने जुबिन को सिंगापुर में बुलाया था।
जांच की ताज़ा स्थिति में भी बड़ी—प्रमुख—गतिविधियाँ हुई हैं: श्यामकानु महंत और जुबिन के मैनेजर सहित कुछ लोगों को पाकिस्तान/देशों से भारत बुलाकर हिरासत में लिया जा चुका है और CBI / SIT से संबंधित पढ़ताल चल रही है; सिंगापुर में घटना के समय वहां मौजूद लोगों में से कुछ गवाहों ने जांच में योगदान दिया या देने के लिए आगे आए। वहीं, SIT ने वित्तीय तार-तार की भी पड़ताल शुरू की है और रिपोर्टों के मुताबिक़ जुबिन के निजी सुरक्षा अधिकारियों के खातों से बड़ी धनराशि के लेन-देन भी मिले हैं — ये सब जांच के नए मोड़ हैं।
जनहित और संवेदनशीलता की जरूरत — टिप्पणी
जुबिन गर्ग की मौत को लेकर जनता में दुख और संशय गहरा है। जुबिन की पत्नी ने भी अपील की है कि उनकी मृत्यु के मामले को राजनीति का विषय न बनाया जाए और उनका सम्मान बनाए रखा जाए। इसी बीच राजनीतिक नेतागणों की जुबानी जंग ने जनता की भावनाओं को और भड़का दिया है; इसलिए अदालत और जांच एजेंसियों को पारदर्शी, स्वतंत्र और शीघ्र कार्रवाई करके तथ्य सामने लाने की ज़रूरत है।
सीएम और विपक्ष के बीच जारी आरोप-प्रत्यारोप के बीच वास्तविक नतीजा यही रहेगा कि जांच तेज़ होगी और कानूनी प्रक्रियाओं के जरिए सच उजागर होने की उम्मीद बनी रहेगी। राजनीतिक बयानबाज़ी से बचकर जांच को स्वतंत्र रूप से चलाने की मांग अब ज़्यादा जोर से उठ रही है।