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ग्रेटर नोएडा: गौतम बुद्ध नगर में तीन प्रमुख प्राधिकरण—नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण—स्थापित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य गरीब, मिडिल क्लास और अपर क्लास को ध्यान में रखते हुए शहरों का विकास करना है। हालांकि, इन प्राधिकरणों ने गरीब और मिडिल क्लास के लिए अवसरों की कमी करते हुए, उन्हें लगभग नजरअंदाज कर दिया है। इन वर्गों के लिए अब शहर में प्राधिकरण से प्लॉट या फ्लैट लेकर रह पाना मुश्किल हो गया है, क्योंकि उनकी कीमतें आम आदमी की पहुंच से बहुत दूर हो चुकी हैं।
यमुना औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने हाल ही में 361 आवासीय प्लॉटों की एक स्कीम निकाली, जिसमें ड्रा के माध्यम से प्लॉट आवंटित किए जाने थे। शुरुआती घोषणा में कहा गया था कि स्कीम में 1500 से 2000 प्लॉट और जोड़े जाएंगे, जिससे लोगों की उम्मीदें बढ़ गईं और लगभग एक लाख फॉर्म भर दिए गए। बाद में, अंतिम तिथि को 23 अगस्त तक बढ़ा दिया गया, और खबरों में प्लॉटों की संख्या बढ़ाने की बात सामने आई। इस उम्मीद में, फॉर्म भरने वाले लोगों की संख्या बढ़कर ढाई लाख तक पहुंच गई।
लेकिन जब अंतिम तिथि नजदीक आई, तो प्राधिकरण ने नए प्लॉट जोड़ने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके पास जमीन नहीं है। इस फैसले ने उन लाखों लोगों को निराश किया, जिन्होंने उम्मीदों के साथ फॉर्म भरे थे। यह कदम लोगों को गुमराह करने जैसा प्रतीत होता है, जिससे उनकी उम्मीदें टूट गईं।
मात्र 361 प्लॉटों के लिए ढाई लाख फॉर्म भरे जाने से यह स्पष्ट है कि महंगाई के इस दौर में लोग प्लॉट पाने के लिए कितने बेताब हैं। लेकिन प्लॉटों की संख्या न बढ़ने के कारण उनकी आशाएं धूमिल हो गई हैं। अब सवाल यह है कि प्राधिकरण इस स्थिति के लिए किसे जिम्मेदार ठहराएगा और क्या गरीब और मिडिल क्लास के लिए कोई ठोस समाधान प्रस्तुत करेगा?
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VIKAS TRIPATHI
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