राहु ग्रह वर्तमान समय में अनेक जातकों की कुंडलियों में सक्रिय है—किसी पर इसकी महादशा चल रही है तो किसी पर आने वाली है। ज्योतिषाचार्य पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि राहु जब राजयोग में आता है, तब यह अत्यंत ऊँचे स्तर के परिणाम देता है। यह कम समय में बड़ी उपलब्धियाँ दिलाने की क्षमता रखता है क्योंकि राजयोग में स्थित राहु सभी ग्रहों की योगकारक शक्तियों को अपने भीतर समाहित कर लेता है।
आज का युग तकनीक और इंटरनेट का है—और इंटरनेट, ऑनलाइन कार्य, अचानक सफलता—ये सब राहु के ही क्षेत्र हैं। इसलिए राहु शुभ स्थिति में हो तो पल भर में जीवन को ऊँचाई दे देता है—
मकान, वाहन, धन, संपत्ति, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य और श्रेष्ठ रोजगार जैसी उपलब्धियाँ सहज रूप से दिलाता है।
राहु कब बनाता है राजयोग?
जब कुंडली में केंद्र और त्रिकोण के स्वामी परस्पर शुभ संबंध में हों और राहु–केतु उनसे शुभ दृष्टि या संबंध बनाए हों।
साथ ही राहु जिस राशि में स्थित हो, उस राशि का स्वामी यदि राजयोग बना रहा हो तथा राहु–केतु पीड़ित न हों, तब राहु की महादशा–अंतरदशा अत्यंत शक्तिशाली राजयोग प्रदान करती है।
पं. शास्त्री जी इसे दो उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करते हैं—
उदाहरण 1 : वृषभ लग्न
वृषभ लग्न में शनि–शुक्र का शुभ संबंध बनने पर प्रबल राजयोग बनता है।
यदि राहु इन राजयोगकारक शुक्र (लग्नेश) और शनि (भाग्येश–कर्मेश) के साथ शुभ भाव में, जैसे 11वें भाव में बैठ जाए—
तो व्यक्ति के जीवन में अत्यंत तेज़ी से बड़ा उत्थान होता है।
ऐसी स्थिति में जातक को उसके सपनों से भी बढ़कर सुख प्राप्त होते हैं क्योंकि राहु यहाँ प्रबल राजयोग को और अधिक शक्तिशाली बना देता है।
उदाहरण 2 : कन्या लग्न
कन्या लग्न में यदि राहु दसवें भाव के मिथुन राशि में स्थित हो, तो यह उच्च का होकर बलवान माना जाता है।
जब राहु का राशि स्वामी बुध शुक्र, शनि या गुरु के साथ अशुभरहित राजयोग बना रहा हो और बुध–राहु पर कोई पीड़ा न हो—
तो यह स्थिति जातक को “फर्श से अर्श” तक पहुँचाने का सामर्थ्य रखती है।
10वाँ भाव राजनीति, व्यवसाय, प्रतिष्ठा और कर्म का होता है—और राहु राजनीति का कारक है।
जब राहु यहाँ उच्च होकर बैठे और बुध राजयोग में हो तो—
विशाल सफलता, उच्च राजनीतिक पद, बड़े व्यापारिक लाभ और समाज में अत्यधिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।














