चेन्नई — जब पत्रकारों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत से पूछा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उत्तराधिकारी कौन होगा?”, तो उन्होंने इस बहस में खुद को पूरी तरह बाहर कर लिया — और जवाब दिया कुछ इस तरह कि आगे की अटकलों के लिए कोई जगह न रहे। 9 दिसंबर को दिए गए उनके बयान ने साफ संकेत दिया: संघ इस उत्तराधिकार की राजनीति में दखल नहीं देगा।
“यह मेरे दायरे से बाहर है” — भागवत के शब्द
भागवत ने कहा, “कुछ सवाल मेरे दायरे से बाहर हैं। इसलिए इस बारे में मुझे कुछ भी कहना नहीं है। मैं सिर्फ शुभकामनाएँ दे सकता हूँ, और कुछ नहीं। मोदी जी के बाद कौन, यह खुद मोदी जी और बीजेपी को तय करना है।”
बोलने का अंदाज़ संक्षिप्त था — पर संदेश स्पष्ट: संघ इस बहस को सांठ-गांठ या सार्वजनिक बयानबाज़ी का विषय नहीं बनाएगा।
संघ ने किन सीमाओं की रेखा खींची?
भागवत का रवैया सिर्फ एक साफ़ इनकार नहीं था — यह संकेत भी था कि संघ बीजेपी के अंदरूनी रणनीतिक मसलों में खुलकर उतरने का इच्छुक नहीं। चेन्नई में शताब्दी वर्ष समारोह के बीच यह टिप्पणी इसलिए भी खास रही कि अक्सर यह माना जाता रहा है कि संघ और बीजेपी के रिश्ते में नेतृत्व की चर्चाएँ स्वाभाविक रूप से जुड़ी रहती हैं।
“विश्वगुरु बनने के लिए एकता ज़रूरी” — बड़ा संदेश
उत्तराधिकार के सवाल से अलग, भागवत ने अपना ध्यान राष्ट्र निर्माण की बड़ी तस्वीर पर रखा। उन्होंने कहा कि यदि भारत को “विश्वगुरु” बनना है तो जाति-आधारित और भाषायी विभाजन मिटाना होगा — और आरएसएस का लक्ष्य इसे फैलाना है। उनके शब्दों में, “हमें RSS को एक लाख या उससे ज्यादा जगहों पर ले जाना है… हमें अपने देश में जाति और भाषायी विभाजन को खत्म करना है और एकता वाला समाज बनाना है।”
जनता के साथ संवाद — संघ की नई सोच?
भागवत ने तिरुचिरापल्ली में यह भी कहा कि संघ अब तथ्यों के ज़रिये अपनी कहानी बताएगा, धारणा-आधारित प्रचार कम होगा। उनका यह आह्वान था कि संघ के स्वयंसेवक जनता से गहरी बातचीत करें और संगठन के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से समझाएँ — ताकि “धारणाओं” की बजाय वास्तविकता जानी जाए।
त्वरित बिंदु (Quick Takeaways)
मोहन भागवत ने स्पष्ट कहा: प्रधानमंत्री उत्तराधिकार का फैसला मोदी और बीजेपी का निजी मामला है।
संघ ने सार्वजनिक रूप से यह संकेत दिया कि वह उत्तराधिकार बहस में शामिल नहीं होगा।
भागवत ने जाति-भाषा विभाजन खत्म कर एकता पर ज़ोर दिया और संघ को ज़मीन पर अधिक सक्रिय करने की बात की।
संघ अब जनता के साथ संवाद बढ़ाकर अपनी छवि तथ्यों पर आधारित करना चाहता है।














