पटना से रिपोर्ट: बिहार विधानसभा का मानसून सत्र इस बार सिर्फ विधायी बहस का मंच नहीं रहा, बल्कि तेज प्रताप यादव के एक सादा सफेद कुर्ता ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया। जब पूरा विपक्ष चुनाव आयोग के SIR के विरोध में काले कपड़ों में एकजुट होकर विधानसभा पहुंचा, तो लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप ने सभी को चौंकाते हुए शांति के प्रतीक सफेद वस्त्र पहनकर हिस्सा लिया।
तेज प्रताप का ये रुख, न केवल विरोधी दलों को चौंकाने वाला रहा बल्कि उनके अपने दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के भीतर खिंचती रेखाओं को भी उजागर करता है। जबकि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव खुद काले कपड़ों में विरोध जताने पहुंचे थे, तेज प्रताप ने बिल्कुल उलट राह चुनी।
“शनिवार को ही पहनता हूं काला कुर्ता, शनि का प्रभाव है”: तेज प्रताप का तर्क
बाहर मीडियाकर्मियों से बात करते हुए तेज प्रताप ने अपनी सफेदी को ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ का प्रतीक बताया और कहा,
“मैं केवल शनिवार को काला कुर्ता पहनता हूं क्योंकि मुझ पर शनि ग्रह का प्रभाव है।”
लेकिन इस सफाई के पीछे की राजनीतिक पटकथा को समझने की ज़रूरत है। तेज प्रताप का ये बयान कहीं न कहीं अनुष्का यादव फोटो विवाद और उसके बाद परिवार से दूरी को सार्वजनिक स्वीकारोक्ति की तरह देखा जा रहा है।
क्या सफेद कपड़ा तेजस्वी को संदेश था?
तेज प्रताप का ये कदम उनके छोटे भाई तेजस्वी यादव के लिए एक साफ संदेश भी हो सकता है—कि अगर परिवार ने उन्हें राजनीतिक रूप से किनारे करने की कोशिश की है, तो वह भी अपनी अलग राजनीतिक लाइन खींचने को तैयार हैं। सफेद कपड़े में विधानसभा पहुंचना इस बात का संकेत है कि तेज प्रताप विरोध की मुख्यधारा से खुद को अलग कर चुके हैं—और शायद नई भूमिका की तैयारी में हैं।
क्या आरजेडी में खुल चुकी है बगावत की खिड़की?
तेज प्रताप यादव का यह अलगाव महज एक निजी झुकाव नहीं, बल्कि आरजेडी के भीतर उठते सियासी भूचाल की आहट है। पार्टी के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने उन्हें पहले ही पार्टी से बेदखल कर दिया है और अब वे सिर्फ हसनपुर से विधायक के रूप में बचे हैं।
ऐसे में बड़ा सवाल ये है—
क्या तेज प्रताप अब स्वतंत्र चुनाव लड़ेंगे? या किसी नई राजनीतिक संरचना की ओर बढ़ रहे हैं?
विरोधी दल भी मौके की तलाश में
सत्ता पक्ष फिलहाल इस पारिवारिक दरार को निजी मामला बताकर टाल रहा है, लेकिन चुनावी मौसम में इस तरह के विवाद सियासी हथियार बन सकते हैं। तेज प्रताप की नाराज़गी और आरजेडी की अंदरूनी खींचतान का जिक्र चुनावी मंचों पर होना तय है—खासकर जब बात ‘एकजुट विपक्ष’ की हो।
तेज प्रताप की अगली चाल क्या होगी?
हसनपुर से दोबारा मैदान में उतरेंगे या सीट बदलेंगे?
आरजेडी टिकट मिलेगा या वे बागी उम्मीदवार बनेंगे?
क्या वो किसी नई राजनीतिक शक्ति की ओर बढ़ रहे हैं?
इन तमाम सवालों के जवाब आने वाले हफ्तों में बिहार की सियासत की दिशा तय करेंगे।
निचोड़: सफेद कुर्ता एक प्रतीक है—नरमी का नहीं, रणनीति का।
तेज प्रताप यादव का ये रुख दर्शाता है कि भले ही उन्हें पार्टी ने हाशिए पर डाला हो, लेकिन उन्होंने खुद को सियासी मैदान से बाहर नहीं माना है। अब देखना ये होगा कि आरजेडी उन्हें मनाने की कोशिश करती है या ये दूरी आने वाले 2025 विधानसभा चुनावों में किसी नई चुनौती का रूप लेती है।