
वक्फ संशोधन कानून पर कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने ऐसा बयान दे डाला, जिसने सियासत के समंदर में लहरें पैदा कर दी हैं। हैदराबाद में ऑल इंडिया मुस्लिम मिली काउंसिल के मंच से मसूद ने कहा – “मस्जिद नहीं होगी तो नमाज कहां पढ़ेंगे, कब्रिस्तान नहीं होंगे तो दफनाए कहां जाएंगे?” फिर जो जोड़ा गया, वो राजनीति की भाषा में धमकी जैसा लगा – “जिस दिन हम आ गए, उस दिन घंटे भर में इसका इलाज कर देंगे।”
इमरान मसूद ने खुद को ‘बड़ा जहाज’ बताते हुए कहा कि “समंदर में तूफान बहुत है, और जब तूफान हो तो उसका मुकाबला कश्तियां नहीं कर सकतीं। इसलिए अब कश्तियों को छोड़िए और बड़े जहाज पर सवार हो जाइए।”
‘इलाज’ किसका और कैसे?
‘इलाज’ शब्द बार-बार दोहराया गया, लेकिन स्पष्ट नहीं किया गया कि इलाज का मतलब कानूनी समाधान है, राजनीतिक संघर्ष है या फिर कुछ और? सवाल यही है कि जब एक सांसद खुले मंच से यह कहे कि “घंटे भर में इलाज कर देंगे,” तो क्या यह किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का संकेत है या धमकी का अंदाज?
संविधान की दुहाई या राजनीति का बयानबाज़ी का मैदान?
मुर्शिदाबाद हिंसा पर इमरान मसूद ने कहा कि “हम हिंसा के खिलाफ हैं, यह मुसलमानों की नहीं, संविधान की लड़ाई है।” लेकिन उसी सांस में उन्होंने यह भी कह दिया कि भाजपा संविधान को आंशिक रूप से रौंद रही है। यानी बात संविधान की भी हो रही है, और ‘इलाज’ की भी।
सवाल उठते हैं…
- क्या वक्फ कानून का विरोध केवल धार्मिक भावनाओं का सवाल है या संपत्ति विवाद का?
- क्या मस्जिद-कब्रिस्तान के नाम पर सियासी रिटर्न टिकट की तैयारी हो रही है?
- और क्या सच में एक घंटे में “इलाज” संभव है — या ये सिर्फ वोट बैंक के लिए फेंका गया एक जुमला?
राजनीतिक विश्लेषण:
इमरान मसूद का बयान कांग्रेस के उस कथित ‘नरम हिंदुत्व’ और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के बीच झूलते एजेंडे की ओर इशारा करता है, जो एक तरफ धर्मनिरपेक्षता की बात करता है, दूसरी ओर धार्मिक भावनाओं की आड़ में चुनावी ज़मीन तलाशता है।

VIKAS TRIPATHI
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