
“कांग्रेस खुद ही नहीं चाहती थी कि नेशनल हेराल्ड चले – क्योंकि मकसद अखबार नहीं, उसकी अरबों की संपत्ति पर कब्जा था।”
— भाजपा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी
नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर भारतीय राजनीति में एक बार फिर गरमाहट बढ़ गई है। बीजेपी के प्रखर प्रवक्ता और सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस पर करारा हमला करते हुए आरोप लगाया है कि कांग्रेस की नीयत अखबार चलाने की कभी थी ही नहीं — उसका असली लक्ष्य था हजारों करोड़ की प्रॉपर्टी पर कब्जा जमाना।
त्रिवेदी ने कांग्रेस के नेतृत्व से सीधा सवाल पूछा —
“अगर कांग्रेस इतनी समृद्ध पार्टी थी, तो फिर अपने ही अखबार को बचा क्यों नहीं सकी? क्या कांग्रेस का कोई नेता नेशनल हेराल्ड को खरीदने तक को तैयार नहीं था?”
“संपत्ति वही, खरीददार और विक्रेता भी वही – क्या ये चैरिटी है या साजिश?”
त्रिवेदी ने नेशनल हेराल्ड डील को लेकर गंभीर सवाल उठाए कि कैसे 90 करोड़ की मामूली डील के जरिए हजारों करोड़ की संपत्ति एक हाथ से दूसरे हाथ में पहुंचाई गई — और दोनों ही हाथ कांग्रेस के ही थे।
उन्होंने कहा, “ये दुनिया का सबसे विचित्र सौदा है, जहां बेचने वाला और खरीदने वाला एक ही है। कांग्रेस 50 साल तक जिस विरासत की दुहाई देती रही, उसे खरीदने तक तैयार नहीं हुई।”
“सरदार पटेल की चेतावनी को कांग्रेस ने नज़रअंदाज़ किया”
त्रिवेदी ने ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का हवाला देते हुए कहा कि 5 मई 1950 को सरदार पटेल ने नेहरू को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा था कि सरकारी लोगों को किसी स्वतंत्रता सेनानी के अखबार से नहीं जुड़ना चाहिए। उन्होंने इसे चैरिटी नहीं, एक ‘व्यावसायिक हस्तक्षेप’ बताया था।
नेहरू ने उसी दिन जवाब देते हुए लिखा — “हेराल्ड एक गुड बिजनेस है और इसमें निवेश उचित है।”
अब त्रिवेदी सवाल करते हैं — “तो फिर कांग्रेस अब इसे चैरिटी की भावना से क्यों जोड़ रही है? क्या ये प्रॉपेगेंडा नहीं?”
“हेराल्ड को बचा सकते थे कांग्रेस कार्यकर्ता – लेकिन क्यों नहीं किया?”
त्रिवेदी ने कहा कि अगर कांग्रेस के सिर्फ 10% कार्यकर्ता भी इस अखबार की सदस्यता लेते, तो यह बंद नहीं होता।
“तीन भाषाओं में छपने वाला अखबार अगर कांग्रेस समर्थकों के बीच भी नहीं बिका, तो ये कांग्रेस की सोच, संस्कृति और सामर्थ्य – तीनों पर सवाल है।”
‘मीडिया को कब्जाने’ की कांग्रेस शैली?
नेशनल हेराल्ड केस आज सिर्फ एक अखबार या संपत्ति विवाद नहीं है — यह कांग्रेस की सोच और सत्ता के प्रति उसके रवैये का आईना है।
त्रिवेदी के बयान से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि कांग्रेस न तो मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर थी, न विरासत के प्रति ईमानदार — वह सिर्फ उसकी संपत्ति पर हक चाहती थी, पत्रकारिता पर नहीं।

VIKAS TRIPATHI
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