गाजीपुर – यूपी बोर्ड की 2025 की हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा केंद्र निर्धारण प्रक्रिया में एक और नई कहानी सामने आई है, जो शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करती है। जहां एक ओर शिक्षा विभाग के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि सभी मानकों का पालन किया गया है, वहीं दूसरी ओर परीक्षा केंद्रों के चयन में गड़बड़ी और मनमानी की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं।
सूत्रों के अनुसार, जिन विद्यालयों ने अपनी गुणवत्ता और मानकों को हमेशा साबित किया, उन्हें अचानक इस प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है, जबकि कुछ विद्यालयों को बिना किसी ठोस कारण के केंद्र का दर्जा दे दिया गया। एक प्रमुख उदाहरण है श्री हरि नारायण राय बालिका इंटर कॉलेज नगसर का, जो पिछले एक दशक से अधिक समय से परीक्षा केंद्र के रूप में कार्य कर रहा था, लेकिन 2025 के लिए इसे सूची से हटा दिया गया।
विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि उन्हें पहले बोर्ड द्वारा परीक्षा केंद्र के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, क्योंकि विद्यालय सभी आवश्यक मानकों को पूरा करता था, लेकिन बाद में बिना किसी स्पष्ट कारण के यह निर्णय बदल दिया गया। प्रधानाचार्य ने आरोप लगाया कि कुछ अधिकारी और कर्मचारी निजी फायदे के लिए परीक्षा केंद्रों का निर्धारण कर रहे हैं, और इसके पीछे उनके व्यक्तिगत स्वार्थ की भूमिका हो सकती है।
इसी बीच, जनपद के कुछ अन्य विद्यालयों में भी इस प्रकार की अनियमितताएं देखने को मिल रही हैं। जिन विद्यालयों के मानक पूरी तरह से संदिग्ध हैं, उन्हें परीक्षा केंद्र बना दिया गया है, जबकि योग्य और प्रतिष्ठित विद्यालयों को इस सूची से बाहर किया जा रहा है। इसके कारण विद्यालयों के प्रबंधकों में नाराजगी बढ़ गई है, और वे इसे शिक्षा विभाग के भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का परिणाम मानते हैं।
यह कहानी न केवल यूपी बोर्ड की परीक्षा केंद्र निर्धारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि शिक्षा विभाग में बैठे अधिकारी किस तरह से अपना निजी फायदा निकालने के लिए बच्चों के भविष्य से खेल रहे हैं। इन मुद्दों को लेकर अब समाज के हर वर्ग में गुस्सा पनप रहा है, और शिक्षा के अधिकारों को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
अब देखना होगा कि क्या इस मामले में शिक्षा विभाग और सरकार कोई ठोस कदम उठाती है, या यह कहानी और घटनाओं के थपेड़े खाती रहेगी।
