
लखीमपुर खीरी, उत्तर प्रदेश: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत मंगलवार को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले की गोला तहसील स्थित कबीरधाम मुस्तफाबाद आश्रम में आयोजित सत्संग में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आयोजन में उन्होंने भारतीय संस्कृति, आत्मकल्याण और राष्ट्रीय चेतना पर प्रेरणादायक उद्बोधन दिया।
“सच्चा सुख आत्मा की शांति में है, न कि भोग की लालसा में”
डॉ. भागवत ने अपने वक्तव्य में कहा,
“जबसे सृष्टि बनी है, तबसे मनुष्य सुख की खोज में है। परंतु सच्चा सुख आत्मा की शांति में है, न कि भोग की लालसा में। उपभोग जीवन का लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि आत्मकल्याण, सेवा और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना ही जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय संस्कृति का मूल भाव “त्याग” है, न कि “संग्रह”। आज जब दुनिया उपभोक्तावाद की दौड़ में स्वयं को खो रही है, भारत को अपने मूल आत्मबोध से संसार को दिशा दिखाने की ज़रूरत है।
“भारत माता की आत्मा ही सबका धर्म है”
सत्संग में उपस्थित श्रद्धालुओं से संवाद करते हुए भागवत ने कहा:
“भाषाएं, समस्याएं, जीवन सब अलग हैं, मगर हम एक हैं। हमारी एक माता हैं — भारत माता। उस भारत माता की आत्मा को आगे रखना ही सबका धर्म है।”
उन्होंने यह भी कहा कि समाज की संरचना आज भी परिवार-प्रधान है। जहां पश्चिम में व्यक्ति इकाई है, वहीं भारत में परिवार ही समाज की मूल इकाई माना गया है। इसी भावना से भारत ने दुनिया को न केवल ज्ञान दिया, बल्कि उसे बाँटा भी — बिना किसी घमंड या स्वार्थ के।
“दान की भावना ही हमें भारतीय बनाती है”
डॉ. भागवत ने एक प्रेरणादायक किस्सा साझा करते हुए कहा कि जब एक चतुर्वेदी नामक व्यक्ति जर्मनी गया, तो लोगों ने सोचा कि चारों वेदों का ज्ञाता आ रहा है, पर जब उनसे वेदों के बारे में पूछा गया तो वह उत्तर नहीं दे पाए।
“इससे यह सीख मिलती है कि केवल नाम नहीं, आत्मा से भारतीय बनना ज़रूरी है। हमारी संस्कृति का आधार ही सेवा, दान और विनम्रता है।”
“कबीर की वाणी केवल भक्ति नहीं, सामाजिक चेतना की पुकार है”
कबीरधाम में आयोजित सत्संग के विशेष संदर्भ में उन्होंने संत कबीर की वाणी को समाज के लिए दिशानिर्देशक बताया।
“कबीर की वाणी केवल भक्ति नहीं है, वह सामाजिक चेतना की पुकार भी है। उनका चिंतन आज के समाज को दिशा देने की क्षमता रखता है।”
संघ भी इसी चेतना को लेकर समाज में समरसता, संतुलन और संस्कारों का संचार कर रहा है।
“हमने कभी कुछ पेटेंट नहीं कराया, यही है भारत की आत्मा”
डॉ. भागवत ने भारतीय ज्ञान परंपरा की विशिष्टता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत ने कभी अपने ज्ञान को दुनिया पर थोपा नहीं, ना ही उसका पेटेंट कराया।
“हमने सबको बहुत कुछ बताया, लेकिन घमंड नहीं किया। यही दान की भावना, यही आत्मविलय ही हमें ‘भारतीय’ बनाती है।”
“संस्कारी संतान वही जो लोकभावना से कार्य करे”
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई, जिसमें कबीरधाम के प्रमुख संत असंग देव महाराज भी उपस्थित रहे। उन्होंने डॉ. भागवत के माता-पिता को नमन करते हुए कहा,
“धरती पर वही माता पुत्रवती है, जिसका पुत्र लोकभावना से कार्य करता है।”
जनसैलाब और सुरक्षा व्यवस्था
कबीरधाम आश्रम में आयोजित इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में श्रद्धालु, संत, ग्रामीणजन और स्वयंसेवक शामिल हुए। आश्रम प्रशासन ने दूरदराज़ से आए लोगों के लिए विशेष स्क्रीनिंग की व्यवस्था की थी। पूरे परिसर में भक्ति, राष्ट्रप्रेम और सांस्कृतिक चेतना का वातावरण बना रहा।
डॉ. भागवत की यात्रा को देखते हुए प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों ने विशेष इंतजाम किए थे। कार्यक्रम में संघ के वरिष्ठ प्रचारक और विभिन्न क्षेत्रीय संघचालक भी मौजूद रहे, जिनमें प्रमुख नाम हैं – अनिल, कौशल, सुभाष, अखिलेश, ओमपाल, यशोदानन्द, कृष्ण मोहन, स्वर्ण सिंह, प्रशांत, राजकिशोर और अशोक केडिया।
आत्मकल्याण से विश्वकल्याण की ओर
यह सत्संग केवल एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत की आत्मा को समझने और जीने का एक अवसर था। डॉ. भागवत का यह संदेश — “आत्मशुद्धि से विश्वशुद्धि की ओर अग्रसर हो” — एक कालजयी विचार है, जो वर्तमान समाज को अपने मूल की ओर लौटने का मार्ग दिखाता है।

VIKAS TRIPATHI
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