मीरा रोड, नित्यानंद नगर की एक शाम, जो भाषण कम और ‘जंगल बुक’ का नया चैप्टर ज़्यादा लग रही थी, जहां शेर (राज ठाकरे) गरज रहा था और बाकी जानवरों को चेतावनी दी जा रही थी – हिंदी नहीं सीखी तो ठीक, पर अगर मराठी भूलने की कोशिश की तो मच जाएगा महाभारत!
राज ठाकरे की आवाज़ में मानो मराठी व्याकरण भी खड़ी हो गई हो, और हिंदी ‘भाषाई आतंकवादी’ बनकर घुस आई हो। सभा के उद्घाटन में ही उन्होंने पूछा — “हमारे महाराष्ट्र का क्या हो गया है?” इस पर एक दुकानदार पीछे से फुसफुसाया, “कुछ नहीं साहब, बस हर भाषण के बाद दो दिन दुकान बंद हो जाती है, वही हुआ है।”
मराठी सैनिक बनाम हिंदी प्रेमी – युद्ध प्रारंभ!
राज साहब ने मीरा रोड की झड़प को ‘मराठी अस्मिता की रक्षा’ बताया। बोले, “जब मेरे सैनिक हाथ उठाते हैं, वो हथियार नहीं, अस्मिता उठती है!” जनता सोच में पड़ गई कि अब से भाषाई बहस में थप्पड़ भी कैलिग्राफी का हिस्सा हो गया है क्या?
“दुकानें बंद नहीं, स्कूल बंद करवा देंगे” – यह चेतावनी ऐसी गूंजी कि पास में बैठे चायवाले ने टीचर को फोन करके पूछा, “मैडम, कल से ऑनलाइन क्लास चालू करना पड़ेगा क्या?”
हिंदी थोपोगे तो थाली भी नहीं बजेगी
राज ठाकरे ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि पहली से पांचवीं तक हिंदी अनिवार्य करने का फैसला दरअसल ‘भाषाई लव-जिहाद’ है। बोले, “मराठी सीखो, नहीं तो झटका लगेगा।”
अब कौन-सा झटका? MSEB वाला या MNS वाला, ये स्पष्ट नहीं किया गया।
वो बोले, “सरकार आत्महत्या करना चाहती है तो करे, हम स्कूल भी बंद करवा देंगे।”
कुछ माता-पिता पीछे से ताली बजाते हुए बोले, “साहब थोड़ा यूनिफॉर्म का खर्च तो बचेगा, जारी रखिए।”
मुंबई की ‘विलगाव साजिश’ – पुराना पिटारा, नया ड्रामा
राज ठाकरे ने कहा, “हिंदी थोपने की कोशिश मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने की साजिश है। ये कांग्रेस से शुरू हुआ और अब बीजेपी तक पहुंच गया।”
जनता सोच में पड़ गई कि हर बार कोई न कोई मुंबई को कहीं ले जाने की कोशिश करता है, जैसे कि ये कोई कबाड़ से ली गई बुलेट ट्रेन हो!
और अंत में – इतनी हिम्मत कहां से आती है?
अब सबसे बड़ा सवाल – राज ठाकरे को इतनी हिम्मत कहां से आती है?
क्या वो सुबह च्यवनप्राश में मराठी मिट्टी मिलाकर खाते हैं?
या फिर ‘हिंदी विरोधी सिरप’ पीते हैं जिससे उन्हें भाषण के दौरान थकान नहीं होती?
या फिर ये वही विरासत है, जो बाला साहब ने छोड़ी थी – हर मुद्दे को ‘मराठी बनाम बाकी सब’ बनाकर TRP कमाने की कला?
राज ठाकरे के ताज़ा भाषण से इतना तो तय है कि जब तक राज्य में प्याज और भाषा दोनों महंगी रहेंगी, तब तक भाषाई राजनीति की दुकानें बंद नहीं होंगी।