
ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश | तारीख: 30 मई 2025
उत्तर प्रदेश का ग्रेटर नोएडा, जिसे लोग ‘नए युग का स्मार्ट सिटी’ मानने लगे थे, अब ‘स्मार्ट ठगी’ का ताज़ा ब्रांड बन चुका है। वजह? यहाँ बिना ज़मीन पर सीवर लाइन डाले ही 200 करोड़ रुपये की ‘सपनीली सफाई’ कर दी गई।
जी हाँ, आप सही पढ़ रहे हैं। गांवों में नाली नहीं है, लेकिन सरकारी काग़ज़ों में उनकी सफाई तीन बार हो चुकी है। ऐसा लगता है जैसे प्राधिकरण ने एक नई तकनीक ईजाद की है: “एस्ट्रल सीवरेज क्लीनिंग सिस्टम” – जो सिर्फ फाइलों में चलता है और करोड़ों निगल जाता है।
तीन कंपनियों ने की सफाई — धरती पर नहीं, डायरी में!
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने तीन कंपनियों को ठेके दिए — साफ-सुथरे तरीके से। 50-50 करोड़ के ठेके दिए गए, और कंपनियों ने पूरे समर्पण से उन सीवर लाइनों की सफाई की जो कभी थीं ही नहीं।
कहीं सीवर लाइन थी ही नहीं, फिर भी उसे ‘जेटिंग और सक्शन मशीन’ से साफ किया गया। मशीनें कहाँ लगीं? वो खुद मशीनें भी आज तक नहीं जानतीं।
2007-2012 के बीच बनी 64 गांवों की ‘कल्पनिक’ सीवर लाइनें!
तत्कालीन बसपा सरकार के शासनकाल में बना ये ‘विकास का जादुई मॉडल’ अब सबके सामने है। 64 गांवों में सीवर लाइन का दावा किया गया, लेकिन ग्रामीणों का साफ कहना है: “भैया, आज तक तो यहाँ नाली भी नहीं आई, सफाई की बात छोड़ो!”
प्राधिकरण का जवाब: “जांच करेंगे” — यानी फिर वही पुराना ‘फॉरवर्डेड’ बयान!
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ साहब का बयान भी किसी स्क्रिप्ट से कम नहीं था —
“हमने संज्ञान लिया है, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”
(जैसे पिछले हज़ार मामलों में बख्शा नहीं गया था…)
जनता के व्यंग्य:
• “प्राधिकरण को नोबेल प्राइज मिलना चाहिए — हवा में सीवर साफ करने के लिए!”
• “अगला टेंडर शायद मंगल ग्रह की गटर सफाई के लिए निकलेगा!”
• “ग्रेटर नोएडा को अब ग्रेटर घोटालापुरम् कहना चाहिए।”