
Sambhal News: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र में खुलासा किया कि 1978 में संभल में हुए दंगे में 184 हिंदू मारे गए थे। जिस संभल को हाल ही में जामा मस्जिद और उसकी सर्वे प्रक्रिया के बाद हुई हिंसा के लिए जाना गया, अब वह एक मंदिर की खुदाई और उसके इतिहास को लेकर चर्चा में है। इस मंदिर को 46 साल बाद खोला गया, जिस पर 1978 के दंगे के कारण ताला लग गया था।
मुख्यमंत्री ने बताया कि 1947 से 2024 के बीच संभल में कुल 209 हिंदुओं की हत्या हुई, जिनमें से 184 सिर्फ 1978 के एक दंगे में मारे गए। लेकिन सवाल उठता है, उस वक्त प्रदेश में किसकी सरकार थी, और क्यों किसी भी गुनहगार को सजा नहीं मिली?
राम नरेश यादव की सरकार में हुआ था दंगा
1978 के इस दंगे के वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री राम नरेश यादव थे, जो जनता पार्टी के नेतृत्व में सरकार चला रहे थे। उस सरकार में कांग्रेस (ओ), लोकदल और जनसंघ (जो बाद में 1980 में भाजपा बनी) के नेता शामिल थे। राम नरेश यादव की कैबिनेट में राम प्रकाश गुप्ता, रवींद्र किशोर साही, कल्याण सिंह, और हरीश चंद्र श्रीवास्तव जैसे जनसंघ के नेता मंत्री थे। वहीं, लोकदल से मुलायम सिंह यादव भी इस सरकार का हिस्सा थे।
दंगे पर सरकार का नियंत्रण क्यों कमजोर रहा?
29 मार्च 1978 को संभल में भड़के इस दंगे को काबू करने में सरकार को एक महीने से ज्यादा का वक्त लगा। पूरे शहर में कर्फ्यू लगा रहा। 184 हिंदू मारे गए, सैकड़ों परिवारों को पलायन करना पड़ा। इस मामले में कुल 48 लोगों को आरोपी बनाया गया, लेकिन पुलिस पर्याप्त सबूत नहीं जुटा पाई। नतीजतन, 2010 में सभी आरोपी दोषमुक्त हो गए।
क्या मिला न्याय?
46 साल बाद भी इस दंगे के गुनहगारों को सजा क्यों नहीं हुई, यह सवाल आज भी जिंदा है। योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में इस दंगे की क्रोनोलॉजी बताई, लेकिन 1978 की उस सरकार की नाकामी और न्याय प्रक्रिया की खामियां स्पष्ट रूप से उजागर हुईं।