तमिलनाडु में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी हलचल तेज़ हो गई है। हाल ही में एआईएडीएमके प्रमुख ई. पलानीस्वामी (ईपीएस) ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। इसके तुरंत बाद खबर है कि तमिलनाडु बीजेपी के शीर्ष नेता भी जल्द ही दिल्ली पहुंचकर अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलेंगे। यह मुलाकात एनडीए की चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देने के लिहाज़ से अहम मानी जा रही है।
एनडीए वोटों के बिखराव को रोकने पर फोकस
बीजेपी का मकसद है कि तमिलनाडु में डीएमके विरोधी वोटों का बंटवारा रोका जाए। इसके लिए पार्टी छोटे-छोटे दलों और एआईएडीएमके से अलग हो चुके गुटों को एनडीए में वापस लाने की कोशिश कर रही है। सूत्रों का कहना है कि अमित शाह और ईपीएस की हालिया बैठक में इसी रणनीति पर गहन चर्चा हुई।
ईपीएस ने शाह से साफ कहा कि बीजेपी को एआईएडीएमके से निष्कासित नेताओं को तुरंत शामिल करने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे गठबंधन की एकता पर असर पड़ सकता है। वहीं, तय हुआ है कि अगले महीने से बीजेपी और एआईएडीएमके संयुक्त अभियान चलाकर राज्य की डीएमके सरकार के खिलाफ जनता के बीच उतरेंगे।
निष्कासित नेताओं की वापसी पर पेच
सबसे बड़ी अड़चन एआईएडीएमके से निष्कासित नेताओं की वापसी है। माना जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेलवम (ओपीएस) को बीजेपी अपने साथ लाना चाहती है। खबरें हैं कि ओपीएस दिसंबर के अंत या जनवरी तक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। लेकिन यह कदम एआईएडीएमके को रास नहीं आ रहा।
ईपीएस की ओर से यह भी संकेत दिए गए हैं कि वे टीवीके प्रमुख विजय को एनडीए में लाना चाहते हैं। उनका तर्क है कि विजय पिल्लै जाति के समर्थन के साथ अगड़ी जातियों को भी आकर्षित कर सकते हैं। लेकिन बीजेपी फिलहाल इसे लेकर सहमत नहीं है। पार्टी का मानना है कि विजय का प्रभाव मुख्य रूप से डीएमके वोट बैंक पर ही है।
शशिकला और दिनाकरन की भूमिका
टीटीवी दिनाकरन और उनकी चाची वी.के. शशिकला पर भी भाजपा की नज़र है। थेवर समुदाय में दिनाकरन की पकड़ मजबूत है, जो एनडीए को सामाजिक संतुलन देने में मदद कर सकती है। वहीं, जयललिता की करीबी मानी जाने वाली शशिकला का झुकाव भी बीजेपी की ओर बताया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि संभव है शशिकला एनडीए के पक्ष में चुनाव प्रचार करें।
एनडीए की संभावित बढ़त
बीजेपी का आकलन है कि यदि छोटे दलों और एआईएडीएमके से अलग हो चुके नेताओं को अपने साथ लाया जाए तो न सिर्फ सत्ता विरोधी वोटों का बिखराव रुकेगा, बल्कि एनडीए की ताकत में भी बड़ी बढ़ोतरी होगी। हालांकि, असली चुनौती एआईएडीएमके को इस रणनीति पर राज़ी करना है, क्योंकि फिलहाल वह इसे अपने आंतरिक मामलों में बीजेपी की दखल मान रही है।