सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के नीलेश (आदिवासी) की मौत के मामले में एक नाटकीय मोड़ दिया — आरोपी गोविंद सिंह राजपूत की अदालत में गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक, और मामले की तीन सदस्यीय एसआईटी से नयी तथा निष्पक्ष जांच का आदेश।
एक नज़र — महत्वपूर्ण बातें
उच्चतम न्यायालय ने कहा: मामले की तफ्तीश निष्पक्ष होनी चाहिए — इसलिए 3 सदस्यों वाली एसआईटी बनाई जाए।
एसआईटी का नेतृत्व मध्यप्रदेश कैडर के, पर राज्य से बाहरी, एक आईपीएस (SP रैंक) को करना होगा; दूसरे सदस्य एक युवा आईपीएस (मध्यप्रदेश से बाहर) और तीसरे सदस्य के रूप में डीएसपी रैंक की महिला अधिकारी होंगी।
एसआईटी को एक महीने में जांच पूरी करने का निर्देश। गठन की अवधि — आदेश के दो दिनों के भीतर।
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी गोविंद सिंह राजपूत की गिरफ़्तारी पर अंतरिम रोक दी — पर अगर एसआईटी को गंभीर आपत्तिजनक सबूत मिलते हैं तो हिरासत की अनुमति के लिए अदालत से अनुरोध किया जा सकेगा।
यह आदेश उस अपील पर आया है जिसमें हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत से इनकार किया था।
अदालत में सख्त सवाल — हत्या या आत्महत्या?
सीजेआई सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्य बागची की पीठ ने मामले के मूल प्रश्न पर जोर दिया:
क्या पीड़ित ने आत्महत्या की? क्या उसे आत्महत्या के लिए उकसाया गया? या यह हत्या थी?
अदालत ने नोट किया कि पीड़ित की पत्नी और भाई के बयान परस्पर विरोधाभासी हैं — पत्नी के अनुसार उत्पीड़न के कारण आत्महत्या हुई, जबकि भाई का कहना है कि आरोपी और उसके साथी इसके लिए जिम्मेदार हैं। साथ ही, वीडियो और अपहरण के आरोप भी चर्चा में आए।
नामों का खेल — भ्रम या बचाव?
अभियुक्त के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल का नाम गोविंद सिंह राजपूत है पर वह विधायक नहीं — जबकि उसी नाम का एक और व्यक्ति (राजनीतिक पद पर) भी मौजूद है। इस नाम-समानता को लेकर भ्रम होने की दलीलें सौंपी गईं। अदालत ने कहा कि प्रभावशाली व्यक्ति होने से मामले पर असर पड़ने का जोखिम है — इसलिए बाहरी अधिकारी एसआईटी में रखें जाना जरूरी माना गया।
केस की पृष्ठभूमि (संक्षेप)
मृतक की पत्नी की शिकायत पर 4 सितंबर को मालथौन पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई — धारा 108 (आत्महत्या के लिए उकसाना), BNS और एससी/एसटी अधिनियम की धाराओं के अंतर्गत।
बाद में परिवार की ओर से अपहरण, वीडियो और खून बहते हुए नज़र आने जैसी बातें भी उठीं।
अब क्या होगा — अगले कदम
1.मध्यप्रदेश DGP को निर्देश — 2 दिनों में एसआईटी गठित कराना।
2.एसआईटी को 30 दिनों में रिपोर्ट सौंपनी होगी।
3.अगर जांच में ठोस आपत्तिजनक सबूत निकलें तो एसआईटी हिरासत की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट से विनती कर सकती है।
4.मीडिया और जनता का ध्यान अब एसआईटी की टीम और उसकी निष्पक्षता पर टिका रहेगा।














