नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश जेल प्रशासन की उस कार्यशैली पर कड़ी नाराज़गी जताई, जिसमें जबरन धर्मांतरण रोकथाम कानून के तहत आरोपी को जमानत मिलने के बावजूद रिहा नहीं किया गया। कोर्ट ने इस लापरवाही को “न्याय का उपहास” करार दिया और यूपी के जेल महानिदेशक तथा गाज़ियाबाद जेल अधीक्षक को तलब किया।
न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि 29 अप्रैल 2025 के आदेश में स्पष्ट रूप से आरोपी आफताब को जमानत पर रिहा करने का निर्देश था। इसके बावजूद जेल प्रशासन ने आरोपी को इस आधार पर रिहा नहीं किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यूपी धर्मांतरण विरोधी कानून (2021) की संबंधित उप-धारा का उल्लेख नहीं था।
कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बेहद गंभीर बताते हुए कहा कि इस तरह तकनीकी आधार पर किसी व्यक्ति को हिरासत में रखना उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है।
“यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक व्यक्ति को आदेश के बावजूद जेल में रखा गया। यदि केवल उप-धारा के उल्लेख न करने के आधार पर रिहाई नहीं दी गई, तो इसे अवमानना माना जाएगा,” कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा।
कोर्ट ने आरोपी के वकील को भी चेतावनी दी कि अगर तथ्यों में गड़बड़ी पाई गई तो उनके खिलाफ भी कार्रवाई होगी।
जेल DG और जेल अधीक्षक तलब:
अदालत ने उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए तथा गाज़ियाबाद जेल अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से 25 जून को कोर्ट में हाज़िर होने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, मामले की अगली सुनवाई बुधवार को तय की है।