
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने मंदिर-मस्जिद विवाद पर बयान देते हुए कहा कि सच्चाई का पता लगना जरूरी है। उन्होंने कहा कि धार्मिक इस्लाम को मानने वाले लोग भी चाहते हैं कि वास्तविकता स्पष्ट हो। लेकिन जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वे राजनीतिक इस्लाम के समर्थक हैं।
उन्होंने कहा, “कब्जा की गई जमीन पर पढ़ी गई नमाज को खुदा भी कुबूल नहीं करेगा। असली इस्लाम ऐसा नहीं कर सकता। मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाना राजनीतिक इस्लाम का हिस्सा है, न कि धार्मिक इस्लाम का। धार्मिक इस्लाम को मानने वालों को इससे समस्या नहीं होनी चाहिए।”
धार्मिक और राजनीतिक इस्लाम में अंतर
शंकराचार्य ने कहा कि मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाने का इतिहास सुनकर हिंदुओं को पीड़ा होती है, जबकि कई मुस्लिम भी इसे लेकर सच्चाई जानना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “हमारी बातचीत में कई मुस्लिमों ने भी स्वीकार किया कि सच्चाई सामने आनी चाहिए ताकि कलंक हमेशा के लिए समाप्त हो सके। जो धार्मिक इस्लाम के अनुयायी हैं, उन्हें इस पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जो राजनीतिक इस्लाम को मानते हैं, वे इसे मुद्दा बनाना चाहते हैं।”
मोहन भागवत पर साधा निशाना
शंकराचार्य ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि वे न्याय और सच्चाई के बजाय अपनी सुविधा के अनुसार बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “पहले सत्ता नहीं थी, तब इस मुद्दे को बढ़ाया गया। अब सत्ता है, तो इसे खत्म करने की बात हो रही है। यह न्याय का नहीं, सुविधा का मामला है।”
पीड़ा के लिए खड़े हैं, नेता बनने के लिए नहीं
मोहन भागवत के शंकराचार्य पर दिए बयान कि वे नेता बनना चाहते हैं, का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “हम इसलिए खड़े हैं क्योंकि हमें पीड़ा है कि हमारे देवताओं की मूर्तियों और मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बना दी गईं। यह कहना कि हम नेता बनने के लिए ऐसा कर रहे हैं, हमारी गलत व्याख्या है। अगर मोहन भागवत हिंदुओं की पीड़ा के साथ खड़े हों, तो वे हमारे हो सकते हैं।”
शंकराचार्य ने कहा कि सच्चाई कभी छिप नहीं सकती और एक दिन सबके सामने आ जाएगी। उन्होंने सवाल उठाया कि सच्चाई जानने के प्रयासों से आखिर लोगों को समस्या क्यों हो रही है।

VIKAS TRIPATHI
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