
पंजाब और हरियाणा को जोड़ने वाला शंभू बॉर्डर आखिरकार 13 महीने बाद ट्रैफिक के लिए खोल दिया गया। दिल्ली-जालंधर नेशनल हाईवे पर अंबाला से राजपुरा तक अब वाहन तेज रफ्तार से दौड़ने लगे हैं। पहले डायवर्जन की वजह से आम लोगों को भारी परेशानी झेलनी पड़ रही थी। ग्रामीण रास्तों से गुजरने के कारण न केवल समय की बर्बादी हो रही थी, बल्कि सड़कों की खराब हालत के चलते गाड़ियों को भी नुकसान पहुंच रहा था।
खनौरी बॉर्डर पर भी पुलिस ने हटाया कब्जा
पटियाला रेंज के डीआईजी मनदीप सिंह सिद्धू ने बताया कि खनौरी बॉर्डर का बड़ा हिस्सा खाली करा लिया गया है। पुलिस ने किसानों की ट्रैक्टर-ट्रॉलियों को 3 किलोमीटर दूर शिफ्ट कर दिया है। अगर कोई किसान अपनी ट्रॉली वापस लेना चाहता है, तो उसे पहचान पत्र दिखाना होगा। उन्होंने दावा किया कि हिरासत में लिए गए किसानों की देखभाल की जा रही है और पुलिस के साथ किसानों ने भी सहयोग किया।
भगवंत मान सरकार पर उठे सवाल
किसानों को शंभू और खनौरी बॉर्डर से हटाए जाने को लेकर राजनीति गरमा गई है। पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने सीएम भगवंत मान पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि उनसे यही उम्मीद थी। उन्होंने किसानों को मिलने के बहाने बुलाया और फिर उनकी गिरफ्तारी करवा दी। बाजवा ने आरोप लगाया कि AAP और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और इस कार्रवाई के पीछे लुधियाना पश्चिम उपचुनाव का गणित छिपा हुआ है।
कैसे शुरू हुआ था आंदोलन?
गौरतलब है कि अपनी मांगों को लेकर पंजाब के किसानों ने 13 फरवरी 2024 को दिल्ली कूच का ऐलान किया था। लेकिन हरियाणा पुलिस ने उन्हें खनौरी बॉर्डर पर रोक दिया। इसके बाद हजारों किसान वहीं डटे रहे और अस्थायी आशियाने बना लिए, जिनमें रोजमर्रा की जरूरत का सामान भी रखा था।
बीते दिन किसानों और केंद्र सरकार के बीच 7वें दौर की बातचीत हुई, जिसके कुछ ही घंटों बाद पंजाब पुलिस ने सैकड़ों किसानों को हिरासत में ले लिया। रातोंरात खनौरी बॉर्डर पर बुलडोजर चला दिया गया और आंदोलनकारी किसानों को वहां से हटा दिया गया।
निष्कर्ष: संघर्ष खत्म या नई लड़ाई की शुरुआत?
शंभू बॉर्डर खुलते ही एक तरफ जहां आम लोगों को राहत मिली है, वहीं इस कार्रवाई ने किसानों के बीच गुस्से की नई लहर पैदा कर दी है। सवाल उठ रहा है कि क्या यह आंदोलन अब पूरी तरह खत्म हो गया है, या फिर किसान जल्द ही किसी नए संघर्ष की नींव रखने वाले हैं? आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सियासत और आंदोलन दोनों तेज होने की संभावना है।

VIKAS TRIPATHI
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