
दिल्ली में कांग्रेस जिला अध्यक्षों की बैठक के दौरान राजस्थान के भीलवाड़ा ज़िला अध्यक्ष अक्षय त्रिपाठी ने पार्टी नेतृत्व के सामने खुलकर नाराज़गी जाहिर की। त्रिपाठी ने राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के समक्ष बिना लाग-लपेट के कहा, “बड़े नेता घमंड में डूबे हैं, न फोन उठाते हैं और न ही बैठक में शामिल होते हैं।”
“चापलूसी का बोलबाला, ज़मीनी कार्यकर्ताओं की कोई सुनवाई नहीं”
अक्षय त्रिपाठी ने टिकट वितरण प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा, “पार्टी में चापलूसों को टिकट मिल जाते हैं जबकि ज़मीनी कार्यकर्ताओं की आवाज़ अनसुनी रह जाती है। हमारे कहने पर ब्लॉक अध्यक्ष तक नहीं बनाए जाते।” उन्होंने इस बात की भी सराहना की कि राहुल गांधी जिला अध्यक्षों को 70 के दशक जैसी ताकत और जवाबदेही देना चाहते हैं, जिससे संगठन मजबूत हो सके।
राहुल गांधी का ‘पावर टू जिलाध्यक्ष’ मॉडल
कांग्रेस अब संगठन को जमीनी स्तर से मज़बूत करने की दिशा में बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है। राहुल गांधी खुद इस मॉडल के पक्षधर हैं कि जिलाध्यक्षों को ताकत दी जाए और उन्हें टिकट वितरण जैसे फैसलों में वाजिब भूमिका दी जाए।
राहुल ने कहा था, “जब तक ज़िलाध्यक्ष मज़बूत नहीं होंगे, कांग्रेस का पुनरुत्थान संभव नहीं। वे पार्टी की रीढ़ हैं।” उनका मानना है कि यदि जिलाध्यक्षों को सही ताकत और संसाधन मिले, तो संगठन के भीतर नया जीवन आ सकता है।
150 से अधिक जिलों में अब भी नहीं हैं अध्यक्ष
चिंताजनक बात यह है कि देशभर के लगभग 150 जिलों में अब भी कांग्रेस के पास कोई जिलाध्यक्ष नहीं है। इनमें महाराष्ट्र, झारखंड, बंगाल, हरियाणा और दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण राज्य शामिल हैं। ऐसे में पार्टी की ज़मीनी पकड़ और संगठनात्मक ढांचा कमजोर बना हुआ है।
राहुल गांधी ने दिए रणनीतिक निर्देश
हाल ही में हुई बैठक में राहुल गांधी ने सभी जिला अध्यक्षों को यह स्पष्ट किया कि उन्हें अपने क्षेत्र की सामाजिक, राजनीतिक और संगठनात्मक स्थिति की पूरी जानकारी होनी चाहिए। उन्हें यह निर्देश भी दिया गया कि वे जनता के मुद्दे उठाएं, पार्टी की विचारधारा का प्रचार करें और स्थानीय नेतृत्व को मजबूती दें।
क्या कांग्रेस का नया प्रयोग रंग लाएगा?
पिछले एक दशक में 80 से अधिक चुनाव हार चुकी कांग्रेस अब जिलास्तर पर सर्जरी करने की कोशिश कर रही है। सवाल ये है कि क्या ये प्रयोग पार्टी को ज़मीनी स्तर पर फिर से खड़ा कर पाएगा या फिर यह भी एक अधूरी कोशिश बनकर रह जाएगा?