नई दिल्ली, — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्षों के ऐतिहासिक शताब्दी वर्ष पर पूरे देश में उत्सव और गौरव का वातावरण है। इस अवसर पर सनातन धर्म के प्रमुख संरक्षक और श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य, जूनापीठाधीश्वर, आचार्यमहामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने संघ की शताब्दी पर अपनी शुभकामनाएँ दी और संगठन की उपलब्धियों को मानवता और राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में प्रस्तुत किया।
संघ की शताब्दी केवल संगठन की नहीं, राष्ट्रधर्म की अखंड गाथा
स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा, “यह शताब्दी वर्ष केवल किसी संगठन की यात्रा नहीं है, बल्कि राष्ट्रधर्म की अखंड गाथा है। संघ ने पिछले 100 सालों में समाज को संस्कारित किया, राष्ट्र की चेतना को एकात्मता की ओर अग्रसर किया और व्यक्ति निर्माण को राष्ट्र-निर्माण का मूल मंत्र बनाया।”
उन्होंने आगे कहा कि संघ की स्थापना के समय भारत दिग्भ्रमित और गुलामी की छाया में डूबा था। उस समय डॉ. हेडगेवार ने हर हृदय में राष्ट्रभक्ति की ज्योति प्रज्वलित कर स्वतंत्रता और स्वराज्य की नींव रखी। यह ज्योति आज भी शाखाओं, स्वयंसेवकों और राष्ट्र की चेतना में जीवंत है।
संघ का एकात्म मानव दर्शन, दुनिया के लिए मार्गदर्शक
महाराज ने कहा, “आज मानवता भौतिकता की अंधी दौड़ में दिशाहीन हो रही है। ऐसे समय में संघ का एकात्म मानव दर्शन पूरे विश्व के लिए पथप्रदर्शक है। यह दर्शन हमें याद दिलाता है कि धर्म केवल पूजा-पद्धति तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज कल्याण, चरित्र निर्माण और राष्ट्र सेवा का महान यज्ञ है।”
स्वामी अवधेशानंद ने संघ की अजेय शक्ति और उसके कल्याणकारी प्रयासों की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “संघ ने विविधताओं और विभिन्नताओं को एकात्मता में बदलते हुए, विपत्ति और महामारी के समय भी करुणा और समर्पण से समाज की सेवा की। यह संकल्प और सेवा भाव आज भी देश और दुनिया के लिए प्रेरणास्त्रोत है।”
शताब्दी वर्ष का संदेश
महाराज ने शताब्दी वर्ष को केवल उत्सव नहीं बल्कि दैवीय आह्वान बताया। उन्होंने कहा, “हमें सनातन संस्कृति के संवाहक बनकर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को जीवित प्रमाण बनाना है। सेवा ही परम धर्म है, और संघ की यह दिव्य ज्योति हमें इसके लिए आलोकित करती है।”
स्वामी अवधेशानंद ने अपने संदेश में राष्ट्रधर्म, सनातन संस्कृति और सेवा-परोपकार की भावना को उजागर करते हुए संघ की शताब्दी वर्ष पर सभी देशवासियों को अनेक शुभकामनाएँ दी।