Thursday, October 9, 2025
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जोधपुर में आरएसएस की तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक: एजेंडा, प्रतिभागी और राजनीतिक मायने

जोधपुर/नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की वार्षिक रूप से होने वाली अखिल भारतीय समन्वय बैठक इस बार 5 से 7 सितंबर, 2025 को जोधपुर में आयोजित होगी। बैठक में संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, सभी छह सह-सरकार्यवाह और संघ के शीर्ष अखिल भारतीय पदाधिकारी शामिल होंगे। वहीं, संघ-प्रेरित करीब 32 अनुषांगिक संगठनों के राष्ट्रीय अध्यक्ष, संगठन मंत्री और अन्य अहम पदाधिकारी भी बैठक में भाग लेंगे।


कौन-कौन भाग ले रहे हैं — प्रमुख सूची और स्वरूप

बैठक में शामिल होने वाले संगठनों में भाजपा के वरिष्ठ प्रतिनिधि तथा सामाजिक-संगठन जैसे विश्व हिंदू परिषद (VHP), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP), राष्ट्र सेविका समिति, वनवासी कल्याण आश्रम, भारतीय किसान संघ, विद्या भारती, भारतीय मजदूर संघ आदि शामिल बताए गए हैं। इन 32 संगठनों के प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्रों के जमीनी अनुभव बैठक के पटल पर रखेंगे और समन्वय के व्यावहारिक कदम तय करेंगे। आयोजकों ने कहा है कि चयनित पदाधिकारी ही भाग लेंगे ताकि चर्चा व्यावहारिक रहे और राष्ट्रीय-स्तर पर समन्वय सुचारू हो।


बैठक का संभावित एजेंडा — क्या होगा चर्चा में?

आधिकारिक वक्तव्य और मीडिया कवरेज के अनुसार बैठक के मुख्य विषय निम्नांश होंगे:

राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में सामूहिक परिकल्पना और धरातलीय योजनाएँ।

सामाजिक व लोकल कार्यों का आकलन — विकास, शिक्षा, किसान व श्रमिक कल्याण से जुड़ी पहलों का मूल्यांकन।

संघ शताब्दी (Centenary) के कार्यक्रम — शताब्दी वर्ष हेतु समन्वित गतिविधियों और सहभागिता-रूपरेखा पर विमर्श।

हाल की घटनाओं का सामूहिक आलोचनात्मक विश्लेषण और भविष्य की रणनीति (जिनमें स्थानीय समस्याओं के समाधान, राहत-कार्य और जन-जागरुकता अभियान शामिल हो सकते हैं)। आयोजकों ने बैठक को तीन दिनों में प्रभावी और निष्कर्षोन्मुख रखने पर ज़ोर दिया है।


पिछले बैठकों का संदर्भ — परंपरा और आज का माहौल

आरएसएस की यह अखिल भारतीय समन्वय बैठक परंपरा के अनुसार साल में एक बार तीन दिनों के लिए होती है; पिछली बार यह बैठक सितंबर 2024 में केरल के पलक्कड़ में हुई थी जहाँ शीर्ष नेतृत्व तथा 32-संगठन प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इस पृष्ठभूमि से यह बैठक पिछले वर्षों की बैठकों का वास्तविक आकलन — और अगले वर्षों की रूपरेखा — तय करने का महत्वपूर्ण मंच मानी जाती है।


आयोजन-लॉजिस्टिक्स और सुरक्षा इंतज़ाम

जोधपुर में तीन-दिन के आयोजन के चलते आयोजन स्थल, आवास-प्रबंध, लोकल-ट्रैफिक और सुरक्षात्मक प्रबंधों पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है। स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों के साथ समन्वय कर, उपस्थित अतिथियों के आवागमन तथा जनसाधारण के साथ भीड़-प्रबंधन की रूपरेखा तैयार की जा रही है। आयोजन की संवेदनशीलता और हिस्सेदारी की व्यापकता के कारण सुरक्षा-व्यवस्था कड़ी रहेगी और बैठक के दौरान मीडिया कवरेज व प्रवेश नियमों का विशेष प्रावधान होगा। (अधिकारिक ब्योरे और स्थानीय प्रशासन से समन्वय जारी)।


राजनीतिक-जनसांस्कृतिक मायने — विश्लेषणात्मक टिप्पणी

1.समन्वय का दायरा: 32 संघ-प्रेरित संगठनों की भागीदारी दर्शाती है कि बैठक केवल संगठनात्मक समन्वय तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक व राजनीतिक परिदृश्यों पर समन्वित कार्रवाई-फ्रेम तैयार करने का मंच है।

2.शताब्दी-वर्ष की तैयारी: शताब्दी कार्यक्रमों पर चर्चा से संगठन वर्षभर की जनभागीदारी व गतिविधियों की रूपरेखा तय करेगा — यह सार्वजनिक छवि और ग्रासरूट कनेक्शन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।

3.नैरेटिव-शेपिंग: शीर्ष नेतृत्व द्वारा हाल की घटनाओं का सामूहिक विश्लेषण राजनीतिक और सामाजिक विमर्श को प्रभावित कर सकता है; बैठकों में बनी प्रतिपादित नीतियाँ सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर सक्रियता को बढ़ा सकती हैं।


क्या अपेक्षा रखें — आउटपुट और संभावित फैसले

आम तौर पर ऐसी समन्वय बैठकों में निम्नलिखित अपेक्षित आउटपुट सामने आते हैं:

समन्वित कार्यसूची (joint program calendar) और प्रांतों के लिए मार्गदर्शक निर्देश।

शताब्दी-वर्ष के लिये अभियानात्मक रूपरेखा और सामूहिक लक्ष्यों का निर्धारण।

संकट-प्रतिक्रिया (disaster response), शिक्षा, किसान और श्रमिक कल्याण जैसे क्षेत्रों हेतु साझा पहलें और मॉनिटरिंग-मैकेनिज़्म।

मीडिया-रिलीज़ व समन्वित घोषणाएँ (यदि कोई बड़ी नीति-संशोधन या कार्यक्रम जारी किए जाने हों)।


5–7 सितंबर को जोधपुर में होने वाली यह अखिल भारतीय समन्वय बैठक आरएसएस के नितांत महत्वपूर्ण शिखर-मंचों में से एक है — जहाँ संगठनात्मक समन्वय के साथ-साथ आगामी वर्षों की नीति-दिशा और शताब्दी-वर्ष की तैयारियाँ अंतिम रूप ले सकती हैं। इस बैठक के परिणाम न केवल संघ-कुटुंब के दायरे में बल्कि देश के सामाजिक-राजनीतिक विमर्श पर भी असर डाल सकेंगे।

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VIKAS TRIPATHI
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