बिहार में चुनावी सरगर्मियां तेज हैं और इसी बीच राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की उम्मीदवार सूची में एक नया सामाजिक समीकरण साफ दिखाई दे रहा है। इस बार पार्टी ने भूमिहार जाति पर खास मेहरबानी दिखाई है।राजद की इस रणनीति के पीछे पार्टी नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की नई सोच नजर आ रही है — जिसमें वे आरजेडी को “A to Z की पार्टी” के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।
‘अछूत’ की छवि से आगे बढ़ने की कोशिश
कभी आरजेडी की राजनीति में भूमिहार जाति को “राजनीतिक रूप से दूर” माना जाता था, लेकिन अब तस्वीर बदलती दिख रही है।तेजस्वी यादव समझ चुके हैं कि भले ही भूमिहारों की आबादी तीन प्रतिशत से भी कम है, लेकिन हर चुनाव में नैरेटिव सेट करने में उनकी भूमिका अहम रहती है।
2020 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही तेजस्वी यादव भूमिहार बहुल इलाकों का लगातार दौरा कर रहे हैं। आरजेडी के नेताओं का कहना है कि तेजस्वी यादव अब इस वर्ग को न सिर्फ सम्मान देना चाहते हैं, बल्कि इसे पार्टी की मुख्यधारा में शामिल करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
एमएलसी टिकट से दिखी नई दिशा
2020 के चुनाव के बाद तेजस्वी यादव ने कई भूमिहार नेताओं को एमएलसी टिकट देकर अपनी नीति का संकेत दिया। इनमें प्रमुख नाम हैं — इंजीनियर सौरभ, कार्तिक मास्टर और अजय सिंह।इन तीनों नेताओं ने न सिर्फ जीत दर्ज की बल्कि अपनी वफादारी और कार्यशैली से तेजस्वी का भरोसा भी जीता।कार्तिक मास्टर, जो कभी बाहुबली अनंत सिंह के करीबी माने जाते थे, कुछ समय के लिए मंत्री भी रहे। हालांकि 2022 में मुकदमे के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी।इसी तरह लक्खीसराय के एमएलसी अजय सिंह और इंजीनियर सौरभ भी हर परिस्थिति में आरजेडी के साथ खड़े रहे — जिससे उन्हें तेजस्वी यादव का विशेष विश्वास मिला।
RJD के नजदीक आते अन्य भूमिहार नेता
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि कई भूमिहार नेता, जो कभी जदयू या एनडीए के साथ थे, अब आरजेडी के संपर्क में हैं।उदाहरण के तौर पर, जदयू विधायक डॉ. संजीव कुमार, जिन्होंने 2024 के विश्वास मत के दौरान नीतीश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था, अब राजद के टिकट पर परबत्ता सीट से चुनाव मैदान में हैं।बरबीघा के विधायक सुदर्शन सिंह, जो दिवंगत राजो सिंह के पोते हैं, भी जदयू नेतृत्व से नाराज चल रहे हैं और इस बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरने की तैयारी में हैं।राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक, सुदर्शन सिंह का रुझान भी आरजेडी के प्रति सकारात्मक है।
लालगंज में मुन्ना शुक्ला की बेटी को टिकट
आरजेडी ने लालगंज सीट से बाहुबली मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला को टिकट देकर बड़ा संकेत दिया है।
मुन्ना शुक्ला वर्तमान में जेल में हैं और उन्होंने 2024 में एनडीए का विरोध किया था। उनकी जगह अब उनकी बेटी को चुनावी मैदान में उतारकर तेजस्वी यादव ने एक प्रतीकात्मक संदेश देने की कोशिश की है — “जो आरजेडी के साथ है, वह जाति से परे परिवार का हिस्सा है।”
सूरजभान सिंह की एंट्री से सियासत में हलचल
पूर्व एलजेपी नेता सूरजभान सिंह, जो कभी चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों के करीबी रहे, अब आरजेडी में शामिल हो गए हैं।पार्टी ने उनकी पत्नी को मोकामा सीट से अनंत सिंह के खिलाफ उम्मीदवार बनाया है।
यह कदम दिखाता है कि जो पार्टी 2020 में एक भी भूमिहार को टिकट देने से बचती थी, वही अब इस समुदाय को अपने साथ जोड़ने के लिए पूरा प्रयास कर रही है।
तेजस्वी की नई रणनीति: ‘A to Z’ सोशल इंजीनियरिंग
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी यादव की यह रणनीति सिर्फ जातिगत विस्तार नहीं, बल्कि छवि सुधार अभियान का हिस्सा है।वह चाहते हैं कि आरजेडी अब सिर्फ “MY (मुस्लिम-यादव)” समीकरण की पार्टी नहीं, बल्कि “All-inclusive A to Z” दल के रूप में उभरे।भूमिहार नेताओं को टिकट देना इसी दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है — जो आने वाले विधानसभा चुनाव में निर्णायक साबित हो सकता है।