
Race for Ministerial Berths in Delhi: दिल्ली में मुख्यमंत्री का चयन जहां एक बड़ी राजनीतिक पहेली है, वहीं मंत्रिमंडल गठन उससे भी कठिन चुनौती बन गया है। कारण साफ है—दिल्ली में अन्य राज्यों की तरह 15% विधायक मंत्री नहीं बन सकते, बल्कि केवल 7 मंत्री ही चुने जा सकते हैं, जिनमें मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।
दिल्ली में बीजेपी ने 48 सीटें जीतकर ऐतिहासिक सफलता हासिल की, लेकिन अब उसकी असली परीक्षा मंत्री पदों के बंटवारे को लेकर होने वाली है। जातीय, धार्मिक और क्षेत्रीय संतुलन साधना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि दावेदारों की एक लंबी कतार है।
दिल्ली में सिर्फ 7 मंत्री बन सकते हैं
दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से केवल 10% विधायक ही मंत्री बन सकते हैं, यानी 1 मुख्यमंत्री और 6 मंत्री। इसके अलावा, पार्टी विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद भी दावेदारों को समायोजित करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है, जिससे कुल 9 नेताओं को सत्ता में जगह मिल सकती है।
मंत्री पद के दावेदारों की लंबी सूची
बीजेपी के पास कई ऐसे विधायक हैं, जो पहले भी मंत्री रह चुके हैं और जिन्हें प्रशासनिक अनुभव भी है। इनमें चार ऐसे नेता शामिल हैं, जो पहले की सरकारों में मंत्री रह चुके हैं—
- राज कुमार चौहान (मंगोलपुरी)
• शीला दीक्षित सरकार में मंत्री रहे हैं।
• दलित समुदाय से आते हैं, जिसे साधना बीजेपी के लिए जरूरी होगा।
• दिल्ली में 12 दलित आरक्षित सीटें हैं, जिनमें से बीजेपी ने 8 में से 4 पर जीत हासिल की है। - अरविंदर सिंह लवली (गांधी नगर)
• शीला दीक्षित सरकार में मंत्री रह चुके हैं।
• सिख समुदाय से ताल्लुक रखते हैं।
• दिल्ली कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं, जिससे उनका राजनीतिक अनुभव बड़ा है। - कपिल मिश्रा (करावल नगर)
• केजरीवाल सरकार में मंत्री रह चुके हैं, बाद में बीजेपी में शामिल हुए।
• वर्तमान में दिल्ली बीजेपी के उपाध्यक्ष हैं।
• टिकट पाने के लिए बीजेपी ने करावल नगर के पूर्व विधायक मोहन सिंह बिष्ट का टिकट काटा था। - कैलाश गहलोत (नजफगढ़)
• केजरीवाल सरकार में मंत्री थे, चुनाव से पहले बीजेपी में आ गए।
• जाट समुदाय से आते हैं।
• दिल्ली में 10 सीटों पर जाटों का प्रभाव है, ऐसे में कैबिनेट में जाट नेता को जगह मिलना तय माना जा रहा है।
जाति, जेंडर और क्षेत्रीय संतुलन साधना बड़ी चुनौती
बीजेपी को यह चुनाव हर जाति और समुदाय के समर्थन से मिला है, इसलिए कैबिनेट में हर वर्ग को संतुलित प्रतिनिधित्व देना उसकी मजबूरी होगी।
• ब्राह्मण समुदाय: 10 विधायक
• दलित समुदाय: 4 विधायक
• जाट समुदाय: 5 विधायक
• सिख समुदाय: 2 विधायक
• वैश्य और अन्य ओबीसी समुदाय: 6 विधायक
• पूर्वांचली समुदाय: 3 विधायक
मुस्लिम प्रतिनिधित्व की संभावना नहीं
दिल्ली में बीजेपी के टिकट पर एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीता, इसलिए कैबिनेट में किसी मुस्लिम को मंत्री बनाए जाने की संभावना नहीं है।
पूर्वांचली नेताओं की भी दावेदारी मजबूत
दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की भूमिका अहम रही है, और बीजेपी के तीन विधायक इस समुदाय से आते हैं—
1. पंकज सिंह (विकासपुरी)
2. अभय वर्मा (लक्ष्मी नगर)
3. चंदन चौधरी (संगम विहार)
अगर बीजेपी पूर्वांचली मतदाताओं को साधने की कोशिश करती है, तो इन तीनों में से किसी एक की लॉटरी लग सकती है।
मंत्री पद को लेकर संभावित समीकरण
बीजेपी को जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने के लिए मंत्रिमंडल में ऐसा संयोजन बनाना होगा, जिसमें—
1. 1-2 ब्राह्मण नेता
2. 1-2 जाट और सिख समुदाय के नेता
3. 1 दलित नेता
4. 1 वैश्य/ओबीसी नेता
5. 1 पूर्वांचली नेता
निष्कर्ष: क्या होगा दिल्ली में बीजेपी का मंत्रिमंडल समीकरण?
• मंत्री पदों की संख्या सीमित होने के कारण कई बड़े नामों को बाहर रखना पड़ेगा।
• जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने की चुनौती सबसे बड़ी होगी।
• पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेताओं को प्राथमिकता मिल सकती है, लेकिन नए चेहरे भी आ सकते हैं।
• पूर्वांचली वोटरों की नुमाइंदगी कैबिनेट में जरूर होगी।
• मुस्लिम समुदाय से कोई मंत्री नहीं होगा।
दिल्ली में 48 सीटों की ऐतिहासिक जीत के बाद बीजेपी के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह संतुलित और प्रभावी मंत्रिमंडल कैसे बनाए। अगले कुछ दिनों में दिल्ली को नया मुख्यमंत्री और मंत्री परिषद मिल जाएगा, लेकिन तब तक राजनीतिक सरगर्मी चरम पर रहने वाली है