नई दिल्ली/मॉस्को: करीब चार साल के लंबे इंतज़ार के बाद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल दिसंबर में भारत दौरे पर आने वाले हैं। क्रेमलिन के वरिष्ठ अधिकारी और राष्ट्रपति के विदेश नीति सलाहकार यूरी उशाकोव ने शुक्रवार को इस बहुप्रतीक्षित यात्रा की आधिकारिक पुष्टि कर दी।
पुतिन इससे पहले आखिरी बार 6 दिसंबर 2021 को भारत आए थे। इस बार उनकी यात्रा को लेकर खास दिलचस्पी इसलिए भी है क्योंकि यह भारत-रूस के बीच “विशेष रणनीतिक साझेदारी” (Special Strategic Partnership) के 15 साल पूरे होने के मौके पर हो रही है।
तियानजिन में होगी पहली मुलाकात
उशाकोव ने बताया कि राष्ट्रपति पुतिन अगले हफ्ते सोमवार को चीन के तियानजिन शहर में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे। यह इस साल दोनों नेताओं की आमने-सामने पहली बैठक होगी। हालांकि, दोनों नेता लगातार फोन पर संवाद बनाए हुए हैं। इस बैठक में दिसंबर की भारत यात्रा की तैयारियों पर विस्तार से चर्चा होने की संभावना है।
15 साल पुरानी साझेदारी, नए मोड़ की ओर
भारत और रूस का रिश्ता किसी साधारण साझेदारी से कहीं आगे बढ़कर है। 2010 में दोनों देशों ने ‘विशेष रणनीतिक साझेदारी’ का जो ऐतिहासिक ऐलान किया था, इस साल उसकी 15वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। यही वजह है कि पुतिन का भारत दौरा केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं बल्कि रिश्तों को नए आयाम देने का अवसर माना जा रहा है।
पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी दो बार रूस की यात्रा पर गए थे — एक बार वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए और दूसरी बार कज़ान में आयोजित ब्रिक्स बैठक में शामिल होने के लिए।
ट्रंप के टैरिफ विवाद की पृष्ठभूमि
दिलचस्प बात यह है कि पुतिन की भारत यात्रा ऐसे समय घोषित हुई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ दोगुना कर दिया है, जो अब 50% तक पहुंच गया है। इसमें भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद पर 25% अतिरिक्त शुल्क भी शामिल है।
भारत लगातार अमेरिका को यह समझाता रहा है कि उसकी ऊर्जा खरीद “राष्ट्रीय हित और बाजार की आवश्यकता” पर आधारित है। 2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने रूस से तेल खरीदना जारी रखा। यही वजह है कि पुतिन का यह दौरा ऊर्जा सुरक्षा और भू-राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है।
दिसंबर में होने वाली यह यात्रा न सिर्फ भारत-रूस संबंधों को नई दिशा दे सकती है, बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की नजरों में भी एक बड़ा संदेश होगी। तियानजिन की मुलाकात से लेकर दिल्ली की मेज़बानी तक, पुतिन और मोदी की कूटनीति एशिया ही नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर सुर्खियां बटोरने को तैयार है।