बिहार में चुनावी गर्माहट तेज हो गई है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ में मंगलवार (26 अगस्त) को हरतालिका तीज के मौके पर प्रियंका गांधी वाड्रा ने पहली बार शिरकत की। यात्रा के नौवें दिन के ब्रेक के बाद यह रवानगी सुपौल से मधुबनी की ओर हुई, जहां प्रियंका जीप पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के साथ नजर आईं और जनता को हाथ हिलाकर अभिवादन किया। लोग प्रियंका की झलक पाने उमड़ पड़े।
प्रियंका इस यात्रा में दो दिन के लिए शामिल हुई हैं और उन्होंने जानबूझ कर त्योहारों वाले दिनों को चुना—पहला दिन हरतालिका तीज और दूसरा दिन गणेश चतुर्थी। दोनों ही दिन बिहार की सांस्कृतिक व धार्मिक संवेदनाओं से जुड़े हैं, इसलिए कांग्रेस के रणनीतिकार इसे रणनीतिक रूप से अहम मान रहे हैं।
यात्रा के पहले दिन प्रियंका ने रास्ते मेंं महिलाओं से संवाद किया और उनके मुद्दे सुने। रोड किनारे हाथों में पूजा की थालियाँ लिए महिलाएँ नजर आईं और कैंप में प्रियंका ने कई महिलाओं से व्यक्तिगत रूप से बात की—यही कांग्रेस का संदेश भी रहा कि वह महिलाओं के साथ सीधे संवाद पर ज़ोर दे रही है। महिला कांग्रेस अध्यक्ष अलका लांबा ने कहा कि प्रियंका ने महिलाओं के त्योहार का मौका चुना है; वह स्वयं नारी शक्ति का प्रतीक हैं और बिहार की महिलाओं से संवाद कर रही हैं।
यात्रा की अगली महत्वपूर्ण कड़ी सीतामढ़ी है, जिसे जनमानस “मां जानकी की धरती” के रूप में जानते हैं। सूत्रों के मुताबिक राहुल और प्रियंका दोनों गणेश चतुर्थी के दिन सीतामढ़ी में मां जानकी के मंदिर के दर्शन करने की इच्छा रखते हैं। हालांकि सुरक्षा, रूट निर्धारण और प्रशासनिक अनुमति के कारण अभी तक इस यात्रा-कार्यक्रम का अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। यात्रा के संयोजक और सुरक्षा अधिकारियों के बीच रूट प्लानिंग व सुरक्षा इंतजाम पर चर्चा चल रही है।
यात्रा के दौरान उपस्थिति, सुरक्षा स्टाफ और कार्यकर्त्ताओं की बड़ी संख्या के चलते मंदिर के दर्शन को लेकर रणनीतिकार पूरी कोशिश कर रहे हैं, परन्तु फिलहाल इसे अंतिम घोषित नहीं किया गया है। कांग्रेस ने यह भी संकेत दिया है कि अगर अनुमति व सुरक्षा व्यवस्थाएँ सुनिश्चित हुईं तो दर्शन हो सकते हैं।
राजनीतिक संदर्भ भी स्पष्ट है—बीते दिनों गांधी परिवार के अयोध्या राम मंदिर न जाने को लेकर बीजेपी ने स्वतः ही बहस छेड़ी थी। कांग्रेस ने उस पर कड़ा पलटवार किया था और इसे ‘मेगा प्रचार शो’ करार दिया था। आज की यात्रा में भी यही तर्क बार-बार उभरा कि धर्म-स्थलों का इस्तेमाल केवल चुनावी प्रचार के तौर पर नहीं होना चाहिए। कांग्रेस का कहना है कि उनका फोकस धार्मिक संवेदनाओं पर राजनीति बनाने से अलग—जनता के साधारण मुद्दे, रोजगार और वोटर अधिकार हैं।
महागठबंधन का यह ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ पहले से ही राज्य में व्यापक चर्चा का विषय बना हुआ है। राहुल-प्रियंका-तेजस्वी की उपस्थिति ने यात्रा को अतिरिक्त संवेदनशीलता व मीडिया फोकस दिया है। नेतागण लगातार SIR प्रक्रिया और वोटर सूची में हेरफेर के आरोप उठा रहे हैं, और यात्रा के जरिये उन्होने इन आरोपों को जनता तक पहुंचाने की कोशिश तेज कर दी है।
कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रियंका की मौजूदगी से महिलाओं में उत्साह देखा गया और भीड़ में पहले से अधिक उत्साह उभरा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि त्योहारों पर नेताओं की आने-जाने की रणनीति स्थानीय भावना को साधने का साधन भी है और संदेश पहुंचाने का मौका भी।
अंतिम शब्द: राहुल-प्रियंका के सीतामढ़ी दर्शन को लेकर फिलहाल सिर्फ संभावना ही है — अंतिम फैसला सुरक्षा व प्रशासनिक सहमति पर निर्भर है। वहीं, ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ ने बिहार की राजनीति में नई ऊर्जा भर दी है और आने वाले दिनों में इसके असर पर नजर टिकेगी।