
फुरकान केस में अदालत ने दी अहम टिप्पणी, IPC की धारा 494 लागू नहीं
प्रयागराज — इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि इस्लाम में बहुविवाह की अनुमति केवल विशेष परिस्थितियों और शर्तों के अधीन दी गई थी, लेकिन वर्तमान समय में इस प्रावधान का पुरुषों द्वारा निजी स्वार्थ के लिए दुरुपयोग किया जा रहा है।
यह टिप्पणी अदालत ने फुरकान व दो अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की। जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने इस्लामी इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि जब मदीना में इस्लाम की प्रारंभिक अवस्था में युद्धों में बड़ी संख्या में मुस्लिम पुरुष मारे गए, तब कई महिलाएं विधवा और बच्चे यतीम हो गए। ऐसे में क़ुरान ने शोषण से बचाने के उद्देश्य से सशर्त बहुविवाह की अनुमति दी।
IPC की धारा 494 कब लागू होगी?
कोर्ट ने 8 मई 2025 को दिए अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अगर कोई मुस्लिम पुरुष इस्लामी शरीयत के अनुसार पहली शादी करता है, तो वह दूसरी, तीसरी या चौथी शादी कर सकता है — यह अवैध नहीं मानी जाएगी। ऐसी स्थिति में IPC की धारा 494 (द्विविवाह का अपराध) लागू नहीं होगी, जब तक कि परिवार अदालत द्वारा उस विवाह को शरीयत के अनुसार अमान्य न ठहराया गया हो।
लेकिन अगर पहली शादी हिंदू विवाह अधिनियम 1955, ईसाई विवाह अधिनियम 1872, पारसी विवाह एवं तलाक अधिनियम 1936, विशेष विवाह अधिनियम 1954 या विदेश विवाह अधिनियम 1969 के तहत की गई हो, और उसके बाद व्यक्ति इस्लाम धर्म अपनाकर मुस्लिम कानून के तहत दूसरी शादी करे — तो ऐसी स्थिति में दूसरी शादी अमान्य मानी जाएगी और उस पर धारा 494 के तहत मुकदमा बनता है।
क्या है फुरकान का मामला?
इस मामले में याचिकाकर्ता फुरकान की पत्नी ने मुरादाबाद की अदालत में प्राथमिकी दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि फुरकान ने पहले से शादीशुदा होने की बात छुपाकर उससे शादी की और शारीरिक संबंध बनाए। मामले में IPC की धारा 376 (बलात्कार), 495, 120-बी, 504 और 506 के तहत समन जारी किया गया था।
फुरकान की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि महिला ने सहमति से शादी की थी और मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार एक मुस्लिम पुरुष को चार विवाह की अनुमति है। अतः उस पर IPC की धारा 494 लागू नहीं होती।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा,
“क़ुरान बहुविवाह की अनुमति केवल उचित कारणों और शर्तों के साथ देता है, न कि निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए। वर्तमान में इस्लामी बहुविवाह की व्यवस्था का अनेक मामलों में दुरुपयोग किया जा रहा है।“
हालांकि, मौजूदा मामले में चूंकि दोनों पक्ष मुस्लिम हैं और विवाह शरीयत के तहत हुआ है, इसलिए अदालत ने फुरकान की दूसरी शादी को वैध माना और उस पर दंडात्मक कार्रवाई पर अस्थायी रोक लगा दी। अदालत ने प्रतिवादी को नोटिस जारी कर मामले की अगली सुनवाई 26 मई से शुरू हो रहे सप्ताह में निर्धारित की।