सीएम सुक्खू पर सहयोगियों को लाभ पहुंचाने का आरोप, बीजेपी बोली—राज्य की जमीन बेचने की साजिश
हिमाचल प्रदेश में टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म्स एक्ट, 1972 की धारा 118 को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पर आरोप है कि वह इस धारा के प्रावधानों को आसान बनाकर अपने राजनीतिक और कारोबारी सहयोगियों को फायदा पहुंचाना चाहते हैं।
वहीं, बीजेपी ने इसे “राज्य की संपत्ति पर हमला” करार देते हुए सख्त विरोध जताया है, जबकि CPI (M) ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार इस दिशा में आगे बढ़ी, तो राज्यभर में जन आंदोलन छेड़ा जाएगा।
जयराम ठाकुर का सीधा हमला
राज्य के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सुक्खू सरकार पर तीखे आरोप लगाए।
उन्होंने कहा, “सत्ता में आने के पहले दिन से ही मुख्यमंत्री सुक्खू राज्य की संपत्ति और हितों को अपने व्यापारिक सहयोगियों के हवाले करने के लिए उत्सुक हैं। अब वे भ्रष्ट अधिकारियों और माफियाओं के इशारों पर नाच रहे हैं।”
बीजेपी नेता ने आरोप लगाया कि माफिया के दबाव में सरकार ने सट्टेबाजी और जुए को वैध करने का रास्ता खोला, और अब वही रवैया भूमि कानूनों में ढील देकर अपनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा, “धारा 118 के प्रावधानों को सरल बनाकर मुख्यमंत्री अपने मित्रों को लाभ पहुंचाना चाहते हैं। यह राज्य के किसानों, जमीन और सांस्कृतिक विरासत पर सीधा प्रहार है।”
CPI (M) ने दी आंदोलन की चेतावनी
सीपीआई (एम) की हिमाचल प्रदेश इकाई ने भी सरकार पर निशाना साधा। पार्टी ने कहा कि धारा 118 में किसी भी प्रकार की ढील “राज्य के लोगों के हितों के साथ विश्वासघात” होगी।
वाम दल ने चेतावनी दी कि यदि सरकार संशोधन की दिशा में कदम बढ़ाती है, तो वह व्यापक जन आंदोलन शुरू करेगा।
क्या है हिमाचल टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म्स एक्ट की धारा 118?
हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म्स एक्ट, 1972 की धारा 118 राज्य में कृषि भूमि के हस्तांतरण को लेकर एक बेहद महत्वपूर्ण प्रावधान है।
इस धारा के तहत—
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गैर कृषक (गैर किसान) हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि नहीं खरीद सकते।
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भूमि का हस्तांतरण (बिक्री, उपहार, विनिमय, पट्टा, बंधक या किसी अन्य रूप में) केवल सरकार की विशेष अनुमति से ही संभव है।
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इस कानून का उद्देश्य राज्य की कृषि भूमि को बाहरी लोगों के कब्जे से बचाना और स्थानीय किसानों के हितों की रक्षा करना है।
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शहरी क्षेत्रों में निर्मित संपत्तियों और कुछ विशिष्ट परियोजनाओं (जैसे होमस्टे या पर्यटन विकास) के लिए सीमित छूट दी गई है।
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अनुमति मिलने के बाद भूमि का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए और निर्धारित समयावधि में करना आवश्यक होता है।
क्यों बढ़ी विवाद की गर्मी?
वर्तमान में चर्चा इस बात को लेकर है कि राज्य सरकार धारा 118 के प्रावधानों को “सरल और लचीला” बनाने की दिशा में सोच रही है। विपक्ष का आरोप है कि ऐसा करना बाहरी निवेशकों और पूंजीपतियों के लिए हिमाचल की कृषि भूमि का रास्ता खोलने जैसा होगा।
वहीं, सरकार का तर्क है कि भूमि उपयोग नीति में कुछ संशोधन राज्य में निवेश, पर्यटन और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए जरूरी हैं।
निष्कर्ष
धारा 118 को लेकर छिड़ा यह सियासी विवाद अब केवल कानून की बहस नहीं, बल्कि “हिमाचल की पहचान और हितों” के सवाल में बदल गया है। आने वाले समय में यह मुद्दा न केवल विधानसभा बल्कि जनता के बीच भी एक बड़ा राजनीतिक विमर्श बनने जा रहा है।














