नई दिल्ली, संसद भवन: लोकसभा में सोमवार को जब विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने “ऑपरेशन सिंदूर” पर बयान देना शुरू किया, तो संसद का माहौल कुछ और ही हो गया। उन्होंने न सिर्फ भारत की आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की जानकारी दी, बल्कि पाकिस्तान की भूमिका को वैश्विक मंच पर उजागर करने की रणनीति का भी खुलासा किया। जयशंकर ने कहा — “हमने न केवल पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया, बल्कि उसकी असलियत को दुनिया के सामने नंगा किया है।”
विदेश मंत्री ने बताया कि पहलगाम आतंकी हमले के बाद सरकार ने कितनी तेज़ी से रणनीतिक और सैन्य मोर्चे पर कदम उठाए। ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने एकजुट, प्रभावशाली और वैश्विक स्तर पर सुसंगत नीति के साथ काम किया।
लेकिन जैसे ही जयशंकर ने विपक्ष के सवालों की ओर इशारा करते हुए पूर्ववर्ती सरकारों की नाकामी को उजागर किया, विपक्ष ने जोरदार हंगामा शुरू कर दिया।
अमित शाह का तीखा प्रहार: “भरोसा भारत पर नहीं, विदेश पर है”
हंगामे के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह खड़े हुए और विपक्ष पर जोरदार हमला बोलते हुए कहा —
“मुझे आपत्ति है कि विपक्ष को भारत के विदेश मंत्री की बातों पर भरोसा नहीं है, लेकिन किसी और देश की बातों पर है।”
शाह ने कांग्रेस पर व्यंग्य करते हुए कहा, “मैं समझ सकता हूं कि उनकी पार्टी में विदेशी मूल की अहमियत क्या है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अपनी राजनीतिक कुंठा को इस सदन पर थोप दिया जाए। यही कारण है कि आप विपक्ष में बैठे हैं — और अगले 20 साल तक वहीं बैठे रहेंगे।”
“सच को हलाहल समझकर पी गए” – अमित शाह
गृह मंत्री ने विपक्ष के व्यवहार को लोकतंत्र के लिए अपमानजनक बताते हुए कहा,
“जब उनके नेता बोल रहे थे, तब हमने संयम रखा। लेकिन जब हम सच रख रहे हैं, तो वे सुन नहीं पा रहे। कल विपक्ष ने जो झूठ बोला, उसे हमने हलाहल समझकर पी लिया, लेकिन आज वो सच का सामना नहीं कर पा रहे। अगर यह रवैया जारी रहा, तो फिर हम भी अपने सदस्यों को संयम की सीख नहीं दे पाएंगे।”
उन्होंने अध्यक्ष से आग्रह किया कि वे विपक्ष को अनुशासित करें, ताकि देश से जुड़े गंभीर मुद्दों पर चर्चा सुचारु रूप से हो सके।
“नेता प्रतिपक्ष ने इतिहास नहीं पढ़ा” – एस. जयशंकर
बातचीत को आगे बढ़ाते हुए डॉ. जयशंकर ने कांग्रेस को आड़े हाथों लेते हुए कहा —
“नेता प्रतिपक्ष ने शायद इतिहास की किताबें पूरी नहीं पढ़ीं। उन्हें यह भी नहीं पता कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) का गठन 1950 में हुआ था। चीन और पाकिस्तान के बीच सैन्य गठजोड़ की नींव 1966 में पड़ चुकी थी। जब 1980 में राजीव गांधी दोनों देशों के दौरे पर गए थे, तब परमाणु सहयोग अपने चरम पर था। आज ये लोग हमें चीन-पाक रिश्तों पर चेतावनी दे रहे हैं!”
“जिन्होंने कुछ नहीं किया, वो आज सवाल पूछ रहे हैं”
जयशंकर ने 26/11 हमले और मुंबई ट्रेन बम विस्फोटों की याद दिलाते हुए कांग्रेस सरकार की नीतिगत विफलताओं को उजागर किया। उन्होंने कहा —
“जब मुंबई में विस्फोट हुए, उस समय की सरकार पाकिस्तान से बातचीत में लगी थी। जिन लोगों ने कभी निर्णायक कदम नहीं उठाए, आज वही सरकार पर सवाल उठा रहे हैं — यह शर्मनाक है।”
उन्होंने बताया कि 25 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद से लेकर ऑपरेशन सिंदूर की पूरी रूपरेखा तैयार करने तक, प्रधानमंत्री मोदी और उनके बीच 27 बार बातचीत हुई। यह दर्शाता है कि कैसे वर्तमान सरकार ने आतंकी हमले का उत्तर देने में तीव्र, सजग और प्रभावी नेतृत्व दिखाया।
एक तरफ निर्णायक कार्रवाई, दूसरी तरफ भ्रम और हंगामा
यह बहस सिर्फ एक सैन्य ऑपरेशन की नहीं थी, बल्कि यह उस राजनीतिक सोच की भी थी जो आतंकी हमलों पर मूकदर्शक बनी रही, और उस नई भारत की भी जो अब चुप नहीं बैठता।
जहाँ एक ओर जयशंकर और शाह ने आतंकवाद पर भारत की स्पष्ट नीति को सामने रखा, वहीं विपक्ष बार-बार हंगामे से असहज होकर सच से भागता नज़र आया।