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Swami Chidanand Saraswati Responds to Mamata Banerjee on Maha Kumbh: परमार्थ निकेतन आश्रम के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के महाकुंभ को ‘मृत्यु कुंभ’ कहने वाले बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “यह मृत्यु कुंभ नहीं, अमृत कुंभ है। यह एक ऐतिहासिक महाकुंभ है, जो भारत को एक नई दिशा दे रहा है।”
‘महाकुंभ तो जोड़ने वाला है, तोड़ने वाला नहीं’
स्वामी चिदानंद ने कहा कि महाकुंभ केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि भारत को महान बनाने की यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सनातन धर्म सबको जोड़ता है, प्रेम, करुणा और सत्य का संदेश देता है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ में करोड़ों लोग स्नान कर रहे हैं, लेकिन कोई भूखा नहीं सोया। वहां न कोई जातिवाद की दीवार दिखी, न भेदभाव की कोई रेखा खींची गई।
‘50 करोड़ से ज्यादा लोगों ने स्नान किया, लेकिन कोई हिंसा नहीं हुई’
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि महाकुंभ में अब तक 50-55 करोड़ लोग आ चुके हैं, लेकिन कोई विवाद या हिंसा नहीं हुई। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “इतने लोगों की भीड़ थी, लेकिन किसी ने किसी की चाय में थूका नहीं, किसी ने पत्थर नहीं फेंका।”
‘महाकुंभ नहीं, महान कुंभ है’
उन्होंने महाकुंभ को ‘महान कुंभ’ और ‘अमर कुंभ’ बताते हुए कहा कि यह आयोजन भारत की संस्कृति, एकता और सहिष्णुता का प्रतीक है। इस महाकुंभ ने दुनिया को दिखा दिया कि भारत को भारत की नजरों से देखा जाना चाहिए, न कि किसी पूर्वाग्रह से।
‘कुछ लोग सच से परेशान हैं, कुछ अपनी सोच से’
स्वामी चिदानंद ने कहा कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या सोच की है। उन्होंने कहा, “कुछ लोग सच में परेशान हैं, कुछ सच से परेशान हैं और कुछ अपनी सोच से परेशान हैं। सोच बदलेंगे तो सबकुछ बदल जाएगा।”
ममता बनर्जी ने क्या कहा था?
दरअसल, ममता बनर्जी ने विधानसभा में प्रयागराज संगम में हुई भगदड़ का जिक्र करते हुए कहा था कि “यह महाकुंभ, मृत्यु कुंभ बन गया है।” उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने मरने वालों की असली संख्या छिपाई और शवों को गुप्त रूप से ठिकाने लगा दिया। ममता के इस बयान पर बीजेपी ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
महाकुंभ को बदनाम करने की कोशिश!
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने ममता बनर्जी के आरोपों को नकारते हुए कहा कि महाकुंभ भारत की आस्था और संस्कृति का महापर्व है। इसे ‘मृत्यु कुंभ’ कहना न सिर्फ सनातन धर्म, बल्कि भारत की परंपरा का भी अपमान है। उन्होंने कहा कि “अब समय आ गया है कि भारत को भारत के नजरिए से देखा जाए, न कि राजनीतिक चश्मे से।”
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VIKAS TRIPATHI
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