Tuesday, July 1, 2025
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नोएडा का ‘गड्ढा मॉडल’ बना राष्ट्रीय प्रतीक: टूटी सड़कें अब कहलाती हैं – ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम’!

रिपोर्ट: विशेष संवाददाता, नोएडा

जहां देश के शहर स्मार्ट सिटी बनने की होड़ में लगे हैं, वहीं नोएडा सेक्टर-116 ने नया रास्ता चुना है — गड्ढों वाला विकास मॉडल। यहां टूटी सड़कों और खुले चैंबरों को ना केवल नजरअंदाज किया जा रहा है, बल्कि ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का इनोवेटिव नाम देकर उन्हें विकास का हिस्सा भी बताया जा रहा है।

यह करिश्मा संभव हुआ है नोएडा प्राधिकरण के जेई, एसएम और उप महाप्रबंधक (सिविल) की कुशल अनदेखी और अद्वितीय प्रशासनिक “विजन” से।

गड्ढा या जल संरक्षण केंद्र?

करीब तीन महीने पहले टेलीकॉम कंपनियों ने सेक्टर-116 की सड़कों को केबल बिछाने के लिए खोद डाला। कंपनियों ने अपना काम निपटाया और चलते बने, लेकिन प्राधिकरण ने मरम्मत को ‘फिजूलखर्ची’ समझकर नज़रअंदाज़ कर दिया।

अब मानसून की पहली ही बारिश में सड़कें ऐसे बह गईं जैसे बरसों से बाढ़ का इंतज़ार कर रही हों। तीन-चार फीट गहरे गड्ढे ऐसे दिखते हैं जैसे हर नुक्कड़ पर जल संग्रहण संयंत्र खुल गए हों — दुर्घटनाओं का आंकड़ा छोड़िए, अब इन्हें ‘पर्यावरण संरक्षण’ की उपलब्धि बताया जा रहा है।

प्राधिकरण का नवाचार: गड्ढे = ग्रीन इनिशिएटिव

प्राधिकरण के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा:

“लोग गड्ढों को समस्या मानते हैं, जबकि यह भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge) का हिस्सा है। सड़कें टूटी हैं तो क्या, पानी तो जमीन में जा रहा है ना! हम दूरदर्शी हैं।”

अब सवाल उठता है — क्या बिना डीपीआर, बिना बजट, और बिना ज़िम्मेदारी के सड़कें तोड़ना ही अब ‘हरित विकास’ का नया सरकारी मॉडल बन गया है?

शिकायतों का श्मशान: उप महाप्रबंधक (सिविल) का कार्यालय?

सेक्टर-116 की जनता ने शिकायतों की झड़ी लगा दी उप महाप्रबंधक (सिविल) और -JE, AE, SM को मेल, कॉल, ट्वीट और वीडियो भेजे गए, लेकिन जवाब तो दूर, प्रतिक्रिया तक नहीं मिली।

स्थानीय निवासियों का कहना है, “यहां शिकायतें इनबॉक्स में नहीं, सीधा रीसायकल बिन में जाती हैं।

स्थानीय व्यंग्य: ‘पद्मश्री’ के योग्य अधिकारी!

स्थिति से त्रस्त जनता अब व्यंग्य को ही शस्त्र बना रही है।

एक निवासी ने कहा:

“हर साल सड़क टूटे, हर साल नया गड्ढा बने — यही तो नोएडा का वार्षिक ‘विकास महोत्सव’ है! उप महाप्रबंधक साहब को पद्मश्री मिलना चाहिए — उन्होंने बिना योजना और बिना टेंडर स्थायी जल संरचनाएं बना डालीं!”

प्राधिकरण का ‘साइलेंट मोड’ जारी

नोएडा प्राधिकरण के उच्च अधिकारी अब तक चुप हैं — शायद नींद में हैं, या फिर जागते हुए भी आंखें बंद कर रखी हैं। ऐसा लगता है कि ‘स्मार्ट सिटी’ का अर्थ उन्होंने केवल फाइलों तक सीमित कर लिया है।

गड्ढों में गिरे विकास के सबक

नोएडा सेक्टर-116 ने साबित कर दिया है कि अब विकास रिपोर्ट कार्ड में सड़कों की लंबाई नहीं, गड्ढों की गहराई गिनी जाती है।
अगर यही हाल रहा, तो आने वाले स्मार्ट सिटी इंडेक्स में ‘गड्ढों की संख्या’ भी एक पैरामीटर बन सकता है।

प्राधिकरण को चाहिए कि वह इन ‘कर्ताधर्ताओं’ की अनदेखी को पुरस्कार के योग्य माने, और बाकियों को सिखाए कि ‘काम कैसे नहीं करना है।’

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VIKAS TRIPATHI
VIKAS TRIPATHIhttp://www.pardaphaas.com
VIKAS TRIPATHI भारत देश की सभी छोटी और बड़ी खबरों को सामने दिखाने के लिए "पर्दाफास न्यूज" चैनल को लेके आए हैं। जिसके लोगो के बीच में करप्शन को कम कर सके। हम देश में समान व्यवहार के साथ काम करेंगे। देश की प्रगति को बढ़ाएंगे।
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