
आज से देशभर में बोर्ड परीक्षाएँ शुरू हो रही हैं। लाखों छात्र अपने भविष्य की इस महत्वपूर्ण परीक्षा में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश कर रहे हैं। परीक्षा केंद्रों के बाहर माता-पिता की दुआओं और शिक्षकों के मार्गदर्शन के साथ छात्र अंदर जा रहे हैं, लेकिन एक सवाल उठता है—क्या इन छात्रों का मनोबल बढ़ाने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए कोई सामाजिक संगठन आगे आया है?
हर साल वेलेंटाइन डे पर पार्कों और सार्वजनिक स्थलों पर तथाकथित “संस्कृति रक्षक” नैतिकता की दुहाई देते हुए प्रेमी जोड़ों को धमकाते और परेशान करते नजर आते हैं। विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल जैसे संगठन “भारतीय संस्कृति की रक्षा” के नाम पर सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन जब बात देश के भविष्य—यानी विद्यार्थियों—के मनोबल को बढ़ाने की आती है, तो इन संगठनों की ओर से कोई विशेष पहल या समर्थन देखने को नहीं मिलता।
क्या इन संगठनों का उद्देश्य केवल चुनिंदा मुद्दों पर नैतिकता का पाठ पढ़ाना है? अगर वास्तव में इनका मकसद समाज को सही दिशा में ले जाना है, तो क्या बोर्ड परीक्षा के पहले दिन ये संगठन स्कूलों और परीक्षा केंद्रों के बाहर जाकर छात्रों को प्रेरित करने, उन्हें शांतिपूर्ण माहौल देने और किसी भी तरह की असुविधा को दूर करने के लिए आगे नहीं आ सकते?

बोर्ड परीक्षाएँ हर छात्र के जीवन का अहम मोड़ होती हैं। ऐसे में यदि सामाजिक संगठन परीक्षा केंद्रों पर शांति व्यवस्था बनाए रखने, छात्रों को शुभकामनाएँ देने और उन्हें तनावमुक्त माहौल देने की पहल करें, तो यह वास्तव में समाजहित में होगा।
आज के दिन जरूरत थी कि ये संगठन हाथों में पोस्टर लेकर खड़े होते और कहते—
“पढ़ो, बढ़ो, देश का नाम रोशन करो!”
“डर मत, मेहनत करो, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी!”
लेकिन अफसोस, ऐसे प्रयास शायद उनकी प्राथमिकताओं में नहीं आते। समाज को सही दिशा दिखाने का दावा करने वाले इन संगठनों को यह भी सोचना चाहिए कि असली ‘संस्कृति रक्षा’ केवल प्रेमी जोड़ों को डराने से नहीं, बल्कि विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने और शिक्षा को बढ़ावा देने से होगी।
देश को नैतिकता के पहरेदारों से ज्यादा, प्रेरणा देने वाले मार्गदर्शकों की जरूरत है

VIKAS TRIPATHI
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