मुंबई, 29 अगस्त — मराठा समुदाय को ओबीसी कोटे से आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर मनोज जारंगे पाटिल ने आज आज़ाद मैदान में हजारों समर्थकों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दी। जारंगे पाटिल ने साफ कहा है कि मराठा समुदाय को आर्थिक तौर पर पिछड़ा मानते हुए उन्हें आरक्षण दिया जाना चाहिए; उनकी मुख्य माँग है कि मराठा को ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण मिले। इस मांग पर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी समर्थन जाहिर किया और सरकार से मराठा समुदाय को आरक्षण देने की अपील की।
शिंदे ने उद्धव पर किया पलटवार, सरकार की उपलब्धियाँ गिनाईं
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे और महाविकास आघाड़ी सरकार पर कड़ा हमला करते हुए कहा कि जब उद्धव मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने मराठा आरक्षण की रक्षा क्यों नहीं की। शिंदे ने यह भी बताया कि उनकी सरकार ने जब वे मुख्यमंत्री थे तब 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था और मराठा समाज आज भी उसके लाभ उठा रहा है।
शिंदे ने कहा, “हमने सारथी के माध्यम से कई योजनाएँ चलीं — ब्याज मुक्त ऋण, छात्रावास जैसी सुविधाएँ दी गईं — जिनकी वजह से मराठा समाज UPSC और MPSC जैसी प्रतियोगिताओं में आगे बढ़ रहा है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ओबीसी आरक्षण हटाकर मराठाओं को आरक्षण देना संभव नहीं है और किसी ने ऐसा करने में भूमिका नहीं निभाई है। शिंदे ने दोहराया कि सरकार का लक्ष्य है कि पहले से मिले आरक्षण को बरकरार रखा जाए और मराठा समुदाय के लिए समुचित सहायता बनी रहे।
उद्धव का रुख — “न्याय दिलाने की बात पर ज़ोर”
पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि मराठाओं को न्याय के लिए मुंबई आना पड़ा और यह बात दर्शाती है कि उनकी परिस्थितियाँ गंभीर हैं। उद्धव ने याद दिलाया कि पहले देवेंद्र फडणवीस ने आरक्षण दिया था और जब सत्ता में रहकर उसे टिकाए रखने की जिम्मेदारी आती है तो उसे निभाया जाना चाहिए। उद्धव ने यह भी कहा कि यदि मराठी लोग अपने अधिकार के लिए मुंबई नहीं आएंगे तो वे अन्य शहरों में क्यों जाएँगे — उनका तर्क था कि मराठी समाज के हितों के लिए हिम्मत दिखानी चाहिए।
राजनीतिक तकरार का बाजार गरम
शिंदे और उद्धव के बीच यह वाक्-युद्ध राजनीतिक वर्गीकरण को और तीखा कर रहा है। शिंदे ने विपक्ष पर “दोहरे पैमाने” का आरोप लगा कर पूछा कि जब उनके पास सत्ता थी तो वे मराठा हितों के लिए क्यों आगे नहीं आए। वहीं उद्धव ने कहा कि मराठा समुदाय की आवाज़ सुने बिना मौजूदा हालात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
क्या है अगला कदम?
सरकार की चुनौतियाँ: शिंदे ने यह संकेत दिया है कि ओबीसी कोटा हटाना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है; इसलिए मराठा आरक्षण का मामला संवैधानिक और नीति स्तर पर जटिल बना हुआ है।
समाज और राजनीतिक दबाव: भूख हड़ताल और उद्धव का समर्थन इस मुद्दे को राजनीतिक रूप से संवेदनशील बनाते हैं — जिससे सरकार पर दबाव बढ़ सकता है।
संभावित समाधान: प्रशासनिक सहायता, आर्थिक पैकेज, शैक्षिक व व्यावसायिक योजनाओं के माध्यम से तत्काल राहत और दीर्घकालिक नीतिगत चर्चा दोनों पार्क में आ सकती हैं।














