
Kolkata Female Doctor Rape-Murder Case: कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज की ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी संजय रॉय को सियालदह कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई। हालांकि, इस फैसले के बाद यह सवाल उठने लगा कि मौत की सजा क्यों नहीं दी गई। कोर्ट ने इसे “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की श्रेणी में नहीं माना। आइए इसे सरल भाषा में समझते हैं।
सियालदह कोर्ट का फैसला और जज की टिप्पणी
इस मामले में सियालदह कोर्ट के एडिशनल सेशन जज अनिर्बान दास ने कहा कि यह मामला “दुर्लभ से भी दुर्लभ” नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि मौत की सजा केवल असाधारण मामलों में दी जानी चाहिए। जज ने यह भी कहा कि ऐसे गंभीर अपराधों में भी सुधार की संभावना को ध्यान में रखते हुए न्याय देना चाहिए।
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया
सियालदह कोर्ट के फैसले के बाद पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील दायर की है। सरकार ने दोषी को उम्रकैद के बजाय फांसी की सजा देने की मांग की है। वहीं, दोषी संजय रॉय के पास भी उच्च न्यायालय में अपील करने का विकल्प मौजूद है।
“रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की परिभाषा क्या है?
“रेयरेस्ट ऑफ रेयर” का उल्लेख सबसे पहले 1980 में सुप्रीम कोर्ट के बच्चन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में किया गया था। इस फैसले में तय हुआ कि उम्रकैद को नियम और मौत की सजा को अपवाद माना जाएगा। बाद में 1983 में मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में इसे और स्पष्ट किया गया।
इस परिभाषा के तहत, अपराध की क्रूरता, परिस्थिति, दोषी का आचरण, और उसका आपराधिक रिकॉर्ड देखकर तय किया जाता है कि यह मामला “रेयरेस्ट ऑफ रेयर” की श्रेणी में आता है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मौत की सजा तभी दी जाए जब अपराध इतना संगीन हो कि उम्रकैद की सजा अपर्याप्त लगे।
अब आगे का कानूनी रास्ता
हालांकि, यह मामला सियालदह कोर्ट के फैसले के साथ समाप्त नहीं हुआ है। राज्य सरकार के हाईकोर्ट में जाने और दोषी के पास अपील का विकल्प खुला होने से, यह मामला अभी न्यायिक प्रक्रिया में बना रहेगा। अब देखना होगा कि उच्च न्यायालय क्या निर्णय लेता है।