नई दिल्ली, शुक्रवार — जमीयत उलमा-ए-हिंद (JUH) के अध्यक्ष मौलाना मौहम्मद (महमूद) मदनी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की उन हालिया टिप्पणियों का स्वागत किया जिनमें संवेदनशील धार्मिक मामलों पर खुलकर बातचीत और सामुदायिक दूरी घटाने का इशारा था। मदनी ने कहा कि मुस्लिम नेताओं और आरएसएस के बीच सकारात्मक संवाद को प्रोत्साहन मिलना चाहिए और इस तरह की पहलें दोनों समुदायों के बीच भरोसा बनाने में मदद कर सकती हैं।
मदनी ने साथ ही अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए जाने की खबरों में आने वाले कथित 50 प्रतिशत टैरिफ्स की निंदा भी की और कहा कि भारत किसी भी तरह के दबाव में नहीं आएगा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “हम ‘आधी रोटी’ खाएंगे, लेकिन झुकेंगे नहीं। कोई समझौता हो तो बराबरी के स्तर पर होना चाहिए,” और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के रुख का समर्थन जताया। (अमेरिका के टैरिफ सम्बन्धी वैश्विक कवरेज और राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का भी सार्वजनिक चर्चा में उल्लेख हो रहा है)।
ज्ञानवापी-मथुरा—काशी विवाद पर बातचीत का समर्थन
मदनी ने ज्ञानवापी मस्जिद तथा मथुरा—काशी से जुड़े विवादों का हवाला देते हुए कहा कि मतभेदों पर बात-चीत की जमीन बननी चाहिए। उन्होंने कहा कि JUH ने पहले भी बातचीत के पक्ष में प्रस्ताव पारित किए हैं और ऐसे सहयोगी संवाद से तनाव घटाने में मदद मिलेगी। उन्होंने आरएसएस प्रमुख भागवत के हालिया बयान—जिसमें समुदायों तक पहुंचने की कोशिशों की बात कही गई—की प्रशंसा की।
पहलगाम हमले पर नागरिक समाज की भूमिका और राजनीतिक भाषा पर चिंता
पहलगाम में हुए हालिया आतंकवादी हमले के सिलसिले में मदनी ने कहा कि देश के नागरिक समाज ने उस साजिश को समझकर स्थिति को संभाला और अशांति फैलने से रोका। उन्होंने कानून-व्यवस्था में सुधार और सुरक्षा एजेंसियों की बढ़ती पेशेवर क्षमता की सराहना की, साथ ही कहा कि राजनीतिक विमर्श का स्तर नीचे गिर गया है — विपक्ष और सत्ता, दोनों तरफ से अनुचित और आपत्तिजनक भाषा का उपयोग हो रहा है, जो राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक है।
मदनी ने यह भी कहा कि सुरक्षा मामलों में नागरिकों और संस्थाओं को सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए और वर्तमान सरकार की सुरक्षा नीति पिछली सरकारों की तुलना में बेहतर दिखती है। उन्होंने कानून-प्रवर्तन एजेंसियों में अधिक समावेशिता की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
प्रतिक्रिया और सम्भावित निहितार्थ
मदनी के खुले संवाद-समर्थन और भागवत की कुछ सापेक्ष नरम पंक्तियों का स्वागत करने से राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू—मुस्लिम रिश्तों पर सकारात्मक चर्चा की संभावनाएँ पैदा होती हैं, पर आलोचक इसे दोहरा मापदंड या राजनीतिक संकेतक भी मानते हैं। वहीं, अमेरिका के टैरिफ को लेकर उठ रही चिंताओं ने व्यापारिक और कूटनीतिक स्तर पर नई बहस छेड़ दी है और राजनीतिक दल भी अपनी—अपनी राय सार्वजनिक कर रहे हैं।