
नई दिल्ली – सिंधु जल समझौते के अप्रैल 2025 में प्रस्तावित निलंबन के बाद भारत ने पश्चिमी नदियों के जल के अधिकतम उपयोग की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। सरकार अब जम्मू-कश्मीर की ऐतिहासिक रणबीर नहर के विस्तार की योजना को तेजी से अमल में ला रही है। यह नहर अब 60 किलोमीटर से बढ़ाकर 120 किलोमीटर तक विस्तारित की जाएगी, और इसकी जल वहन क्षमता 40 क्यूसेक से बढ़ाकर 150 क्यूसेक की जाएगी।
रणबीर नहर: जम्मू-कश्मीर के किसानों की जीवनरेखा
रणबीर नहर का निर्माण डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह के शासनकाल में 1873 से 1905 के बीच हुआ था। यह नहर चिनाब नदी से जल लेकर जम्मू शहर, आरएस पुरा, बिश्नाह, सांबा और कठुआ के कई हिस्सों में कृषि भूमि की सिंचाई करती है। वर्तमान में इससे 16,000 हेक्टेयर ज़मीन को पानी मिलता है।
जल संकट और ऊर्जा उत्पादन – दोहरे लाभ की योजना
सरकारी सूत्रों के अनुसार, इस नहर की जल वहन क्षमता को 40 से बढ़ाकर 150 क्यूसेक करने से न केवल जल संकट से जूझ रहे क्षेत्रों को राहत मिलेगी, बल्कि इससे बिजली उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी। इससे जम्मू क्षेत्र की सिंचाई संरचना को नया जीवन मिलेगा और स्थानीय किसान आत्मनिर्भर बन सकेंगे।
पाकिस्तान की बढ़ती चिंता: चिनाब पर भारत का नियंत्रण बढ़ेगा
रणबीर नहर के विस्तार को लेकर पाकिस्तान में बेचैनी स्पष्ट है। पाकिस्तानी मीडिया और विश्लेषकों का मानना है कि यदि भारत यह परियोजना पूरी करता है, तो चिनाब नदी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पाकिस्तान तक पहुंचने से पहले ही रोक लिया जाएगा। इससे वहां खेती और पीने के पानी का संकट उत्पन्न हो सकता है।
पाकिस्तान की सिंधु जल पर निर्भरता कितनी गंभीर?
- 80% कृषि भूमि निर्भर: पाकिस्तान की लगभग 16 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि सिंधु प्रणाली के जल पर आधारित है।
- 93% सिंचाई: देश की 93% सिंचाई सिंधु नदी प्रणाली से होती है।
- 61% जनसंख्या पर असर: सिंधु प्रणाली 23 करोड़ की आबादी को प्रभावित करती है, जिनमें कराची, लाहौर, मुल्तान जैसे प्रमुख शहर शामिल हैं।
- ऊर्जा संकट की आशंका: तरबेला और मंगला जैसे जल विद्युत संयंत्र इसी प्रणाली पर आधारित हैं।
- 25% GDP में योगदान: सिंधु नदी प्रणाली पाकिस्तान की GDP में लगभग 25% योगदान देती है।
भारत का संदेश स्पष्ट: जल संप्रभुता से समझौता नहीं
रणबीर नहर का विस्तार भारत की उस नीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह अपने जल संसाधनों पर पूर्ण अधिकार चाहता है। सिंधु जल समझौते के निलंबन के बाद भारत अब अंतरराष्ट्रीय संधियों की समीक्षा करते हुए राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे रहा है। इस कदम से न केवल भारत की जल सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि पाकिस्तान पर दबाव भी बढ़ेगा।














