मुंबई: महाराष्ट्र में जारी मराठी बनाम हिंदी विवाद के बीच शिवसेना (उद्धव गुट) के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने सवाल उठाया है कि जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) यह कह चुका है कि भारत की सभी भाषाएं ‘राष्ट्रीय भाषा’ हैं, तो फिर फडणवीस क्यों मराठी जनता पर हिंदी थोपने की कोशिश कर रहे हैं?
“RSS और BJP की भाषा नीति में विरोधाभास है” — राउत
संजय राउत ने कहा:“जब स्वयं संघ तीन-भाषा नीति (त्रिभाषा फार्मूला) का विरोध करता है और हर भाषा को राष्ट्रभाषा मानता है, तब भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को किस अधिकार से महाराष्ट्र की ज़मीन पर हिंदी थोपने का प्रयास कर रहे हैं?”
राउत का यह बयान RSS प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर के उस बयान के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि:“हमारे लिए सभी भारतीय भाषाएं मातृभाषा हैं। विविधता में एकता ही भारत की पहचान है। हम भाषा के नाम पर कोई भेदभाव नहीं करते।”
भाषा विवाद के बीच संघ का संतुलनकारी हस्तक्षेप
देश में बढ़ते हिंदी बनाम क्षेत्रीय भाषाओं के टकराव (जैसे तमिल बनाम हिंदी और मराठी बनाम हिंदी) के बीच संघ का यह बयान एक ‘शांति संकेत’ के रूप में देखा जा रहा है। संघ का कहना है कि प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए और स्थानीय भाषाओं का आदर करते हुए संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को बढ़ावा देना चाहिए।
हालांकि, संजय राउत का कहना है कि संघ के इस विचार और भाजपा की राजनीतिक नीतियों में स्पष्ट विरोधाभास है। उन्होंने आरोप लगाया कि फडणवीस सरकार राज्य में हिंदी को थोपने का प्रयास कर रही है, जिससे मराठी अस्मिता को चोट पहुंच रही है।
पृष्ठभूमि: हिंदी को तीसरी भाषा बनाने पर बवाल
महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में कक्षा 1 से 5 तक तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य बनाने का फैसला किया था, जिसे लेकर राज्य में तीखी बहस शुरू हो गई। ठाकरे गुट और मनसे ने इस फैसले का तीखा विरोध किया, जिसके बाद उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को इसे वैकल्पिक भाषा घोषित करना पड़ा।
संजय राउत का कहना है कि:
“यह जबरदस्ती की नीति है, जो न केवल संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है, बल्कि मराठी जनता की भावनाओं का अपमान भी है।”
‘मराठी थोपो नहीं, सम्मान दो’ का संदेश
संपूर्ण प्रकरण में RSS का हस्तक्षेप जहां सामंजस्य की दिशा में एक कदम माना जा रहा है, वहीं राउत का बयान यह दिखाता है कि महाराष्ट्र में भाषा के सवाल पर राजनीतिक टकराव अब और भी धारदार हो गया है। भाजपा और संघ के बीच नीति और व्यवहार में सामंजस्य का अभाव विपक्ष के लिए एक राजनीतिक हथियार बनता जा रहा है।
RSS का समन्वयकारी बयान एक ओर संवाद की पहल है, तो दूसरी ओर राउत का हमला दर्शाता है कि महाराष्ट्र में भाषा के सवाल को लेकर भावनाएं और राजनीति दोनों चरम पर हैं। यह विवाद आने वाले समय में भाजपा और शिवसेना (उद्धव गुट) के बीच मूल्य बनाम व्यावहारिकता की सियासी जंग का अहम मुद्दा बन सकता है।