Tuesday, July 1, 2025
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कर्नाटक CET परीक्षा में छात्रों से जबरन उतरवाया गया जनेऊ, भड़की विहिप और ब्राह्मण महासभा — हिंदू विरोध का आरोप, माफी की मांग तेज

कर्नाटक के शिवमोगा जिले में CET (कॉमन एंट्रेंस टेस्ट) परीक्षा के दौरान छात्रों से जबरन जनेऊ उतरवाने की घटना ने तूल पकड़ लिया है। इस संवेदनशील मामले में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और ब्राह्मण महासभा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे हिंदू आस्था पर सीधा हमला करार दिया है।

शिवमोगा के आदिचुंचनगिरी स्कूल में परीक्षा देने पहुंचे तीन छात्रों से जबरन उनका जनेऊ उतरवाया गया। यह मामला सामने आते ही भारी विरोध शुरू हो गया। विश्व हिंदू परिषद और ब्राह्मण महासभा ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। पीड़ित छात्रों की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है।

“हिंदुओं से घृणा करने वालों की साजिश” — विनोद बंसल

विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा,

“यह सिर्फ परीक्षा केंद्र की गलती नहीं है, यह हिंदू आस्था के खिलाफ सुनियोजित हमला है। जो लोग हिंदुओं के प्रति घृणा से भरे हैं, उन्हें जनेऊ की पवित्रता का अंदाज़ा नहीं है। उनके लिए यह बस एक धागा है, लेकिन हमारे लिए यह धर्म और संस्कार की पहचान है।”

उन्होंने चेतावनी दी कि

“सिर्फ खेद जताने या सस्पेंशन से बात नहीं बनेगी। इस घटना के पीछे की मानसिकता और साजिश का पर्दाफाश होना चाहिए। कर्नाटक सरकार लगातार हिंदू विरोधी नीतियों को बढ़ावा दे रही है। मुख्यमंत्री को तुरंत सार्वजनिक माफी मांगनी चाहिए और छात्र की परीक्षा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।”

“क्या बच्चे की गलती थी?” — केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने उठाए सवाल

इस घटना पर केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा,

“सरकार ने छात्रों से जनेऊ उतारने को कहा, और कहीं तो इसे काटे जाने की भी बात सामने आई है। संबंधित अधिकारियों ने भले खेद जताया हो, लेकिन उस छात्र का क्या जिसने परीक्षा ही नहीं दे पाई? क्या यही संवेदनशील प्रशासन है?”

जोशी ने सरकार से ठोस कदम उठाने की मांग की और इसे बेहद दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया।

यह परीक्षा या आस्था पर प्रहार?

घटना ने एक अहम सवाल खड़ा कर दिया है — क्या शैक्षणिक अनुशासन के नाम पर धार्मिक स्वतंत्रता कुचली जा सकती है? क्या हिंदू छात्रों को उनकी आस्था की कीमत पर परीक्षा देनी होगी?

कर्नाटक सरकार के लिए यह एक संवेदनशील मोड़ है। अब देखना होगा कि क्या सरकार इस मुद्दे को सिर्फ “नियम के पालन” तक सीमित रखती है, या आस्था और संवैधानिक अधिकारों के बीच संतुलन साधती है।

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VIKAS TRIPATHI
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