लखनऊ – उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। मऊ से सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई है और उनकी सीट को आधिकारिक रूप से रिक्त घोषित कर दिया गया है। यह कार्रवाई अब्बास अंसारी को दो साल की सजा मिलने के बाद की गई, जिसमें उन्हें नफरत भरे भाषण देने का दोषी पाया गया था।
रविवार को यूपी विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की। खास बात यह रही कि अवकाश के दिन भी विधानसभा सचिवालय खोला गया और अब्बास अंसारी की अयोग्यता से जुड़ा आदेश जारी किया गया। अधिसूचना में कहा गया है कि अब्बास अंसारी को 31 मई 2025 से विधानसभा सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है। अतः मऊ विधानसभा सीट 31 मई से रिक्त मानी जाएगी।
अब्बास अंसारी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। हालांकि वे समाजवादी पार्टी (सपा) से जुड़े रहे, लेकिन चुनावी गठबंधन के तहत उन्हें सुभासपा ने अपना प्रत्याशी बनाया था। यह गठबंधन उस समय सपा और सुभासपा के बीच हुआ था, जिसके तहत कई सीटों पर सीट बंटवारे का समझौता हुआ था।
अब्बास अंसारी, चर्चित पूर्व विधायक और बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी के बेटे हैं। चुनाव जीतने के बाद अब्बास ने एक जनसभा में विवादास्पद और उत्तेजक भाषण दिया था। इस मामले में उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही हुई और मऊ की एमपी-एमएलए कोर्ट ने उन्हें दोषी पाते हुए दो वर्ष की सजा सुनाई।
इस सजा के आधार पर उनकी सदस्यता समाप्त की गई है, जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत स्वाभाविक प्रक्रिया है। अब इस सीट पर उपचुनाव कराए जाएंगे, जिसके लिए चुनाव आयोग जल्द कार्यक्रम घोषित करेगा।
इस पूरे घटनाक्रम पर सुभासपा प्रमुख और यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा,
“अब्बास अंसारी हमारे विधायक हैं। अदालत ने फैसला सुना दिया है, लेकिन हम ऊपरी अदालत में अपनी बात रखने जाएंगे। हम हाईकोर्ट का रुख करेंगे।”
ओपी राजभर ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी न्यायपालिका का सम्मान करती है, लेकिन उन्हें लगता है कि अब्बास अंसारी के मामले में ऊपरी अदालत से राहत मिल सकती है। उन्होंने संकेत दिया कि पार्टी इस फैसले को चुनौती देने के लिए कानूनी रास्ता अपनाएगी।
इस तरह, मऊ विधानसभा सीट से अब्बास अंसारी की सदस्यता खत्म होना और सुभासपा का उनके पक्ष में खड़ा होना, आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति को प्रभावित कर सकता है। साथ ही, मऊ उपचुनाव भी राजनीतिक दलों के लिए एक अहम परीक्षा साबित हो सकता है।