ढाका, (विशेष रिपोर्ट): बांग्लादेश की International Crimes Tribunal-1 (ICT-1) द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को क्राइम्स अगेंस्ट ह्यूमैनिटी के आरोपों में मौत की सजा सुनाए जाने के बाद एक बड़ा राजनीतिक-कानूनी विवाद जन्म ले चुका है। मामले का नाभिक — क्या भारत उन्हें बांग्लादेश को सौंपेगा और क्या वह सजा भारत में भी लागू होगी — अभी अटकी हुई है। आइए कदम-दर-कदम समझते हैं पूरे मामले को और उसके कानूनी-कूटनीतिक निहितार्थ को।
क्या हुआ? — घटनाकोर और फैसले का सार
2024 में शुरू हुए छात्र आंदोलन के बाद हालात बेकाबू हुए — रिपोर्टों के अनुसार हज़ारों लोग घायल और सैकड़ों की मौतें हुईं, व्यापक गिरफ्तारी हुई और सामाजिक मीडिया पर अस्थायी प्रतिबंध लगा। बढ़ते दमन और राजनीतिक अस्थिरता के बीच अगस्त 2024 में शेख हसीना भारत पहुंच गईं; भारत ने उनकी सुरक्षा-विवस्था गोपनीय रखी।
17 नवंबर को ICT-1 ने तीन बड़ी धाराओं के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया — प्रदर्शनकारियों पर हवाई हमले की मंज़ूरी, शहरी इलाकों में एयर-टार्गेटिंग ऑपरेशन का आदेश, तथा मानवाधिकारों के बड़े पैमाने पर उल्लंघन। अदालत ने एक कथित कॉल रिकॉर्डिंग को भी साबित मानते हुए उन्हें सज़ा-ए-मौत दी। शेख हसीना ने फैसले को ‘राजनीतिक बदला’ और ‘कंगारू अदालत’ करार दिया है।
अब सवाल: क्या यह सज़ा भारत में लागू होगी?
सरल उत्तर — नहीं, स्वतः नहीं। भारत में बैठी किसी व्यक्ति पर विदेशी (घरेलू) अदालत का फैसला तभी लागू होता है जब भारत की अपनी अदालत़ उस फैसले को कानूनन स्वीकार करे या प्रत्यर्पण/सौंपने की प्रक्रिया पूरी हो। दूसरे शब्दों में, ICT-1 का फैसला भारत की न्यायव्यवस्था को स्वतः बाध्य नहीं करता।
क्या भारत को UN या कोई अंतरराष्ट्रीय संस्था यह सौंपने के लिए मजबूर कर सकती है?
ICT-1 एक घरेलू न्यायाधिकरण है — उसे लागू कराने के लिए यूनाइटेड नेशंस-सरीखी किसी संस्था की सीधी प्रवृत्ति सामान्यतः नहीं होती। केवल कुछ अंतरराष्ट्रीय अदालतें (जैसे ICC या ICJ) की कार्रवाइयों को अंतरराष्ट्रीय तंत्रों के जरिए लागू कराने के अलग कानूनी रास्ते होते हैं। इसलिए, सामान्य रूप से UN भारत को बाध्य कर के शेख हसीना सौंपने का अधिकार नहीं रखता।
क्या भारत कानूनी रूप से प्रत्यर्पण कर सकता है?
भारत-बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण की संधियाँ मौजूद हैं, पर प्रत्यर्पण पर भारतीय कानून में ठोस सुरक्षा-फ़िल्टर हैं। मामले के विश्लेषण से सामने आने वाले प्रमुख बिंदु:
राजनीतिक कारणों से प्रत्यर्पण रोका जा सकता है। अगर प्रत्यर्पण का उद्देश्य राजनीतिक प्रतिशोध दिखे तो भारत उसे ठुकरा सकता है।
निष्पक्ष मुक़दमे की चिंता: यदि प्रत्यर्पण के बाद दोषी को स्वतंत्र-निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिलने का प्रमाण हो तो प्रत्यर्पण रोका जा सकता है।
मानवाधिकार व मौत की सज़ा का जोखिम: अगर प्रत्यर्पित व्यक्ति को मौत की सज़ा का खतरा हो या अमानवीय व्यवहार का भय हो, तो भारत अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं के आधार पर प्रत्यर्पण को अस्वीकार कर सकता है।
संक्षेप में — मृत्यु-दंड + राजनीतिक कारण जैसी स्थितियों में भारत कानूनी आधार पर प्रत्यर्पण को ठुकरा सकता है।
अगर भारत मना करे तो बांग्लादेश के पास क्या विकल्प होंगे?
बांग्लादेश के पास कूटनीतिक और बहुपक्षीय मंचों का सहारा लेने के विकल्प हैं: द्विपक्षीय दबाव, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों (SAARC/Organisation of Islamic Cooperation/कमनवेल्थ) में शिकायतें, या मानवाधिकार मंचों पर मुद्दा उठाना। पर इन रास्तों से भारत को कानूनी तौर पर तब तक बाध्य नहीं किया जा सकता जब तक कोई नयी अंतरराष्ट्रीय कानूनी प्रक्रिया न चले।
राजनीतिक और भू-राजनीतिक निहितार्थ
भारत-विरोधी भावनाओं में वृद्धि: प्रत्यर्पण या न करने दोनों ही स्थितियों में स्थानीय और क्षेत्रीय राजनीति गरमा सकती है — प्रत्यर्पण से भारत पर आरोप, न करने पर द्वि-पक्षीय रिश्तों में ठण्डक।
व्यापार व सुरक्षा सहयोग पर असर: कूटनीतिक तकरार का असर सीमा-व्यापार, आतंकवाद-रोधी साझेदारी और सुरक्षा सहयोग पर पड़ सकता है।
भू-राजनीतिक संतुलन: लंबी अवधि में बांग्लादेश का किसी तीसरे बड़े खिलाड़ी (उदा. चीन) की ओर रुख करना भारत के रणनीतिक हितों पर असर डाल सकता है।
भारत के संभावित रास्ते — सारांश
विशेषज्ञों की तरह दिखने वाले विकल्पों का संक्षेप — तीन व्यावहारिक रास्ते:
1.Silent Asylum Model: मौजूदा शरण स्थिति को बनाए रखना; औपचारिक रूप से मामला लंबित बताकर सार्वजनिक रूप से चुप्पी।
2.Human Rights Shield Model: खुलकर कहना कि राजनीतिक सताया जाना और मौत की सज़ा के भय के कारण प्रत्यर्पण संभव नहीं।
3.Conditional Extradition: शर्त रखना — यदि बांग्लादेश मौत की सज़ा हटाए और निष्पक्ष, अंतरराष्ट्रीय-मानक का मुक़दमा सुनिशचित करे तभी प्रत्यर्पण पर विचार।
इन तीनों में एक सामान्य तत्व है: अंतिम फैसला कानूनी से अधिक कूटनीतिक-रणनीति पर टिका होगा।
ICT-1 का फैसला ढाका में असर दिखाता है, पर भारत के भीतर उसकी कानूनी योग्यता स्वतः नहीं बनती। पारंपरिक अंतरराष्ट्रीय नियमों, प्रत्यर्पण कानूनों और मानवाधिकार-विवेचनाओं के कारण भारत के पास कानूनी आधार मौजूद है कि वह शेख हसीना को तुरंत सौंपने से मना कर दे। फिर भी — राजनीतिक परिणाम, क्षेत्रीय संतुलन और द्विपक्षीय नफ़ाज़ पर लिया गया निर्णय व्यापक प्रभाव छोड़ सकता है। इस मामले में अंतिम निर्णय सिर्फ़ क़ानून का नहीं, बल्कि दिल्ली की विदेशनीति और रणनीतिक रिचार्ज का भी प्रतिबिंब होगा।














