Tuesday, July 1, 2025
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धर्म संसद की अनुमति नहीं मिली, यति नरसिंहानंद ने CM धामी को खून से लिखा पत्र

Haridwar yati narsinghanand Giri Three day Dharma Sansad permission: उत्तराखंड में हरिद्वार के जूना अखाड़े में 19 से 21 दिसंबर तक प्रस्तावित धर्म संसद को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। शिवशक्ति धाम डासना के पीठाधीश्वर और श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी महाराज ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपने खून से पत्र लिखकर धर्म संसद आयोजित करने की अनुमति मांगी है।

क्या है यति नरसिंहानंद का दावा?

गिरी महाराज ने पत्र में लिखा है कि धर्म संसद का आयोजन जूना अखाड़े के मुख्यालय में हो रहा है, जो एक निजी धार्मिक स्थल है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह आयोजन किसी सार्वजनिक स्थल पर नहीं हो रहा, फिर भी प्रशासन और पुलिस उन पर दबाव बना रही है।

उन्होंने बताया कि धर्म संसद का उद्देश्य बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ जागरूकता फैलाना है। इस तीन दिवसीय आयोजन में प्रबुद्ध संतों और धार्मिक विद्वानों को आमंत्रित किया गया है, जिसमें हिंदू धर्म और समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा होगी।

इस्लामिक जिहाद और हिंदुओं पर अत्याचारों पर चिंता

गिरी महाराज ने कहा कि वे बांग्लादेश में हिंदुओं के नरसंहार, पाकिस्तान में अत्याचार और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के विस्थापन को लेकर बेहद आहत हैं। उन्होंने कहा कि इस्लामिक जिहाद के खिलाफ जागरूकता फैलाना उनकी जिम्मेदारी है।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

यति नरसिंहानंद ने तर्क दिया कि जूना अखाड़ा एक धार्मिक स्थल है, और वहां धर्म संसद आयोजित करना उनका अधिकार है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों के लिए प्रशासन की अनुमति की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।

हेट स्पीच और सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कार्रवाई

महामंडलेश्वर ने कहा कि उनका कोई भी बयान ‘हेट स्पीच’ नहीं है। उन्होंने चुनौती दी कि यदि उनकी बातें तथ्यात्मक रूप से गलत साबित होती हैं, तो वे गंगा नदी में जल समाधि ले लेंगे। इससे पहले, उनके हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद में ‘हेट स्पीच’ का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था, जिसके कारण प्रशासन इस बार विशेष सतर्कता बरत रहा है।

आगे की स्थिति पर नजर

अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन इस आयोजन की अनुमति देता है या नहीं। गिरी महाराज के अनुसार, यह आयोजन धार्मिक स्वतंत्रता और हिंदू समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है। हालांकि, प्रशासनिक दबाव और कानूनी विवाद इस धर्म संसद को लेकर एक बार फिर से चर्चा का केंद्र बना सकते हैं।

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