
Greater Noida Authority: उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा से एक बार फिर वही पुरानी स्क्रिप्ट पर नई फिल्म रिलीज़ हो गई है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार हाईकोर्ट भी ‘स्पेशल अपीयरेंस’ में आ गया है, तो मामला थोड़ा पेचीदा लग रहा है। पतवाड़ी गांव में बिना भूमि अधिग्रहण किए भूखंड आवंटन का मामला सामने आने के बाद तीन अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है। लेकिन सवाल ये है कि इस बार ये सस्पेंशन कब तक टिका रहेगा?
सूत्रों के मुताबिक, ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के विशेष कार्याधिकारी आर.के. देव, वरिष्ठ प्रबंधक प्रवीण सलोनिया, प्रबंधक के.डी. मणी और लेखपाल श्रीपाल पर जमीन आवंटन के इस खेल में संदिग्ध भूमिका निभाने का आरोप है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद शासन को भी मजबूरन कार्रवाई करनी पड़ी और तीन अधिकारी तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिए गए। लेकिन बाकी दो अधिकारियों की गर्दन पर अभी सिर्फ तलवार लटकी है, जो कभी भी “प्रभाव से तत्काल” गिर सकती है।
सस्पेंशन या बस ‘अंतराल’ की घोषणा?
अब सवाल ये है कि ये सस्पेंशन असली है या फिर वही पुराना खेल शुरू होगा — पहले हंगामा, फिर जांच कमेटी और फिर क्लीन चिट। वैसे, नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की पुरानी फाइलें उठाकर देख लें, तो आपको ‘सस्पेंड एंड रिवाइव’ पॉलिसी की कई मिसालें मिल जाएंगी। यहां अधिकारी सस्पेंड होते हैं, जांच बैठती है, रिपोर्ट्स तैयार होती हैं और फिर किसी दिन एक दबे-छुपे आदेश में क्लीन चिट थमा दी जाती है।

फिर क्या? वही कुर्सी, वही मेज और वही सरकारी कलम से जमीनों का कागज़ी खेल। किसानों की ज़मीनें फाइलों में गुम हो जाती हैं, और जिन पर कार्रवाई होनी चाहिए, वो फिर किसी दूसरे विभाग में ‘प्रमोशन विद कंसीडरेशन’ पा जाते हैं।
इस बार हाईकोर्ट की नजरें टेढ़ी हैं
लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न सिर्फ याचिका पर संज्ञान लिया, बल्कि अधिकारियों के खिलाफ हुई कार्रवाई की रिपोर्ट भी तलब कर ली। अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या जांच कमेटी इस बार भी वही पुरानी स्क्रिप्ट दोहराती है या फिर सच में कोई नतीजा निकलता है।
वैसे, अधिकारी लोग चाहें तो उम्मीद कर सकते हैं कि जांच में वही पुरानी वाली लाइन सुनाई दे — “पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिले, तकनीकी खामियां पाई गईं, अधिकारी निर्दोष पाए गए।” लेकिन हाईकोर्ट को अनदेखा करना इस बार आसान नहीं होगा।
तो, फिलहाल तीन अधिकारी सस्पेंड हैं, लेकिन नोएडा अथॉरिटी में बैठे बाकी ‘साहब’ जानते हैं कि ये सस्पेंशन भी शायद एक ‘इंटरवल’ भर है। असली क्लाइमेक्स तो जांच कमेटी की रिपोर्ट के साथ आएगा — या फिर नहीं भी आएगा!

VIKAS TRIPATHI
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