
राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के बीच विकास कार्यों के लिए फंड और फैसलों में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की भूमिका को लेकर तीखी नोकझोंक देखने को मिली। खरगे ने सरकार पर आरोप लगाया कि गडकरी के पास परियोजनाओं के लिए पर्याप्त फंड नहीं है और हर फैसले के लिए उन्हें पीएमओ की मंजूरी लेनी पड़ती है। इस पर गडकरी ने स्पष्ट किया कि उन्हें अपने कार्यों में पूरी स्वतंत्रता प्राप्त है और किसी भी प्रकार की बाधा नहीं है।
खरगे का आरोप: फंड की कमी और पीएमओ पर निर्भरता
बुधवार को राज्यसभा में पूरक प्रश्न पूछते हुए मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि केंद्र सरकार की विकास परियोजनाओं की रफ्तार सुस्त हो गई है। उन्होंने दावा किया कि पहले जब गडकरी के पास अधिक अधिकार थे, तब सड़क निर्माण के कार्य तेजी से पूरे होते थे, लेकिन अब हर निर्णय के लिए पीएमओ की मंजूरी लेनी पड़ रही है।
खरगे ने कहा,
“मैं मंत्रीजी को कई पत्र लिख चुका हूं, प्रधानमंत्री को भी पत्र भेजे हैं। बार-बार यह मुद्दा उठाना ठीक नहीं लगता, लेकिन ज़मीन पर काम नहीं हो रहा। गुलबर्गा से बेंगलुरु और सोलापुर से बेंगलुरु की सड़कों की हालत जस की तस बनी हुई है। हर काम के लिए पीएमओ से क्लीयरेंस लेना पड़ता है। पहले ऐसा नहीं था। क्या अब मंत्रालय के पास अपने फैसले लेने की ताकत नहीं रही?”
उन्होंने आगे सवाल किया,
“कर्नाटक में कई सड़क परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। फंड का अभाव बताया जा रहा है, जबकि असम और अन्य राज्यों को पर्याप्त बजट दिया गया। क्या अब राष्ट्रीय राजमार्गों की नंबरिंग भी पीएमओ से होती है?”
गडकरी का पलटवार: “मेरे काम में कोई अड़चन नहीं”
मल्लिकार्जुन खरगे के आरोपों पर नितिन गडकरी ने दो टूक जवाब देते हुए कहा कि उनके मंत्रालय के फैसले पीएमओ के पास नहीं जाते, और उन्हें काम करने की पूरी छूट मिली हुई है।
गडकरी ने कहा,
“राष्ट्रीय राजमार्गों की नंबरिंग की कोई भी फाइल प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं भेजी जाती। प्रधानमंत्री ने मुझे सड़क परिवहन मंत्री बनाया है, और उन्होंने मुझे जो अधिकार दिए हैं, उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं है। मुझे अपने फैसले लेने की पूरी स्वतंत्रता है, और मेरे काम में कोई अड़चन नहीं है।”
कर्नाटक में अधूरी सड़क परियोजनाओं के मुद्दे पर गडकरी ने सफाई देते हुए कहा,
“कर्नाटक में सड़क निर्माण में सबसे बड़ी बाधा भूमि अधिग्रहण की है। वहां के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मुझसे मिलकर गए थे। लेकिन मुझे नहीं पता कि आपकी (खरगे) उनसे कोई चर्चा होती है या नहीं। जब तक राज्य सरकार भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को तेजी से पूरा नहीं करती, तब तक सड़क निर्माण कार्य में देरी होती रहेगी।”
क्या है असली मुद्दा?
राज्यसभा में हुई इस बहस के दो महत्वपूर्ण पहलू सामने आते हैं:
- फंड की कमी: खरगे का आरोप है कि केंद्र सरकार कर्नाटक सहित कुछ राज्यों की सड़क परियोजनाओं को पूरा करने में लापरवाही बरत रही है, जबकि अन्य राज्यों को प्राथमिकता दी जा रही है।
- पीएमओ की भूमिका: विपक्ष लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि मोदी सरकार में सभी महत्वपूर्ण निर्णय प्रधानमंत्री कार्यालय से नियंत्रित किए जाते हैं, जिससे मंत्री स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर पाते।
हालांकि, गडकरी ने इन दावों को पूरी तरह खारिज कर दिया और कहा कि वह अपने मंत्रालय में पूरी तरह से स्वतंत्र हैं और किसी भी कार्य के लिए पीएमओ की मंजूरी की जरूरत नहीं पड़ती।
राज्यसभा में गडकरी और खरगे की इस बहस ने केंद्र और विपक्ष के बीच चल रही राजनीतिक खींचतान को एक बार फिर उजागर कर दिया है। जहां कांग्रेस यह आरोप लगा रही है कि सरकार सड़क परियोजनाओं को लेकर भेदभाव कर रही है, वहीं गडकरी ने साफ कर दिया कि उनके मंत्रालय को काम करने में कोई दिक्कत नहीं है और देरी की असली वजह राज्य सरकारों द्वारा भूमि अधिग्रहण की धीमी प्रक्रिया है।
अब देखना यह होगा कि खरगे के आरोपों के बाद कांग्रेस इस मुद्दे को कितना आगे बढ़ाती है और क्या केंद्र सरकार कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में सड़क परियोजनाओं को लेकर कोई ठोस कदम उठाती है।

VIKAS TRIPATHI
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