महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार का अंतिम घंटा बज ही रहा है — और नेताओं ने समझ लिया है कि वोट चाहिए तो तेज़ जरूर दौड़ना होगा। मैदान हो या एयरपोर्ट, अस्पताल हो या रनवे — प्रचार अब किसी पारंपरिक सभा से ज़्यादा ‘स्पोर्ट्स इवेंट’ लगने लगा है।
अजित पवार: हेलिकॉप्टर उतरे तो स्प्रिंट चालू
हेलिकॉप्टर उतरा, पायलट ने टाइमर बजाया — और हमारे उपमुख्यमंत्री साब ने वही किया जो कोई भी संतुलित राजनेता नहीं करता: उतरते ही दौड़ पड़े। पायलट ने कहा — अनुमति 5:15 बजे तक है; पवार ने सुना, समझा और कदमों को तेज कर दिया। ऐसा लगा जैसे हेलिकॉप्टर ने टिकट पर लिखा हो — “निर्देश: उतरे और सीधे सभा में भाग लें”।
एकनाथ शिंदे: एयरपोर्ट पर 500 मीटर की ‘लोकतांत्रिक स्प्रिंट’
शिर्डी एयरपोर्ट पर एकनाथ शिंदे ने दिखा दिया कि लोकतंत्र के लिए कोई दूरी छोटी नहीं होती — 500 मीटर का रन वे पूरी कर आए। सुरक्षा, गनर, कार्यकर्ता — सब पीछे-पीछे। अगर कोई ओलम्पिक बॉडी वोट डोर-टू-वोट स्पर्धा आयोजित करे तो उम्मीदवारों को बुलाने की ज़रूरत ही नहीं — रनवे पर ही रिजल्ट मिल जाएगा।
छगन भुजबल: सलाइन पास, प्रचार ऑन
और जो हुआ, वह शायद चुनाव इतिहास में नया अध्याय है — बाईपास सर्जरी के बाद अस्पताल का बेड, सलाइन की नली और ऑनलाइन लाइव-प्रचार। भुजबल ने सलाइन लेते हुए वोट मांग लिया — भावनाओं का पॉलिटिकल ड्रिप-इन्फ्यूज़न विधि! उनका संदेश भी साफ था: “मुझे प्यार दिया तो हमारे उम्मीदवारों को भी दिये।” बात वोट की थी या इलाज का कंट्रोल-रूम — दोनों में दिल लगाना जरूरी दिखा।
निष्कर्ष (या ‘नोट’ पर टिप्पणी)
अंतिम घंटे की यह भागदौड़ बता रही है कि चुनाव अब समय प्रबंधन, शारीरिक फिटनेस और ऑनलाइन स्टेज प्रेसेन्स का सम्मिलित कार्यक्रम बन चुका है। हेलिकॉप्टर टाइम-टेबल, रनवे रिले और अस्पताल से लाइव — लोकतंत्र ने नई परिभाषाएँ गढ़ ली हैं।
और अगर कल मतदान के बाद कोई नया गाइडलाइन आए — जैसे “नोट: हेलिकॉप्टर के साथ दौड़ने पर अतिरिक्त वोट बोनस नहीं” — तो आश्चर्य न होगा।














