
नई दिल्ली/श्रीनगर
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने साफ कहा कि अब वक्त आ गया है जब पाकिस्तान को करारा जवाब देना ही होगा। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी आगाह किया कि इस संकट की घड़ी में देश को एकजुट रहना होगा, न कि भीतर से कमजोर करना।
उन्होंने कहा, “पिछले 8 दिन से पूरा देश एक सुर में कह रहा है – अब बहुत हो गया। अब सरकार को फैसला लेना चाहिए, और पाकिस्तान को सबक सिखाना चाहिए। प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार को यह तय करना है कि कब और कैसे कार्रवाई करनी है।”
गुलाम नबी आज़ाद ने सरकार के हालिया फैसले का समर्थन करते हुए कहा कि सेना को पूरी छूट देना एक सार्थक और निर्णायक कदम है। उन्होंने उम्मीद जताई कि “मल्टी-प्रोंग्ड स्ट्रैटेजी” के तहत कई मोर्चों पर एक साथ काम होगा, जिससे आतंकी घटनाओं में गिरावट आएगी।
“धर्म पूछकर मारते हैं आतंकी, पर बदले की आग से देश को बचाएं”
आज़ाद ने आतंकवाद की वैचारिक जड़ों पर प्रहार करते हुए कहा कि अधिकतर आतंकी गरीब और बेरोजगार युवा होते हैं, जिनका ब्रेनवॉश किया जाता है। उन्होंने याद दिलाया कि आतंकवाद धर्म नहीं देखता — “पंजाब में आतंकी सिखों को मारते थे, हिंदुओं को छोड़ देते थे।”
उन्होंने स्पष्ट कहा कि “अगर कोई गुनाह करता है, तो उसकी सज़ा पूरी कौम को नहीं मिलनी चाहिए। देश को धर्म के नाम पर बांटने का वक्त नहीं है। यह समय है, जब हम सभी को और सजग और एकजुट रहना होगा।”
“सुरक्षा की खामियों पर नहीं, कार्रवाई की नीति पर हो ध्यान”
सुरक्षा तंत्र की कमियों पर सवालों की बौछार के बीच आज़ाद ने संयम और रणनीतिक सोच की सलाह दी। “हर बार सुरक्षा की कमी की चर्चा होती है, लेकिन आज यह वक्त नहीं। आज यह सोचने का वक्त है कि हमें जवाब कैसे देना है। अगर हम अलग-अलग बोलेंगे, तो दुश्मन को फायदा होगा।”
उन्होंने चेतावनी दी कि पाकिस्तान में चाहे जितनी भी अंदरूनी खींचतान हो — फौज और सियासत — लेकिन हमले के समय वो एकजुट हो जाते हैं, और हमें भी वैसा ही करना होगा।
“ऐसी कार्रवाई हो जिसमें दुश्मन मरे, लेकिन लाठी भी न टूटे”
गुलाम नबी आज़ाद ने संतुलित लेकिन कठोर जवाब की बात करते हुए कहा कि “कार्रवाई ऐसी होनी चाहिए कि दुश्मन को सबक मिले, लेकिन देश को राजनीतिक या सामाजिक रूप से कोई नुकसान न हो। संसद का सत्र बुलाना हो, तो सभी दल सिर्फ इसी विषय पर चर्चा करें, बाकी मुद्दे अगली बार उठाए जा सकते हैं।”
“यह लड़ाई किसी पार्टी की नहीं, यह देश की लड़ाई है”
अंत में उन्होंने स्पष्ट किया कि यह लड़ाई किसी राजनीतिक दल या नेता की नहीं, बल्कि भारत की सेना की है। “सेना तय करेगी – कब, कहां और कैसे जवाब देना है। नेताओं को सिर्फ एकजुट समर्थन देना चाहिए।”
उन्होंने देशवासियों से अपील की कि ऐसे वक्त में बयानबाज़ी और बंटवारे से बचें, और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखें।
गुलाम नबी आज़ाद की यह प्रतिक्रिया उस संतुलन का प्रतीक है जिसकी आज भारत को सबसे ज़्यादा ज़रूरत है — कठोर जवाब के साथ ठंडी सोच, और एकता की रक्षा के साथ सुरक्षा की तैयारी।
अब समय है — शब्दों से नहीं, रणनीति से जवाब देने का।

VIKAS TRIPATHI
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