
नई दिल्ली | विशेष रिपोर्ट
कांग्रेस सांसद और वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने केंद्र सरकार द्वारा 25-26 जून को बुलाई गई संसद की विशेष बैठक (स्पेशल सेशन) को लेकर तीखा हमला बोला है। उन्होंने इस कदम को वर्तमान संकटों से ध्यान भटकाने की चाल बताया और कहा कि मोदी सरकार जनता के असली सवालों से भाग रही है।
सरकार ने यह सत्र 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल (इमरजेंसी) की 50वीं वर्षगांठ के संदर्भ में आयोजित किया है। लेकिन रमेश ने कहा, “देश आज जिन असली संकटों से जूझ रहा है – जैसे कि हालिया पहलगाम आतंकी हमला – उस पर कोई जवाब नहीं है। सरकार इमरजेंसी की आड़ लेकर अपनी नाकामियों को छिपाना चाहती है।”
“आज देश में अघोषित इमरजेंसी लागू है” — जयराम रमेश
रमेश ने सवाल उठाया कि सरकार पिछले 11 सालों से देश में लागू “अघोषित इमरजेंसी” पर क्यों नहीं बोलती? उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “जो खुद कांच के घर में रहते हैं, उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए।”
उन्होंने कहा कि अगर सरकार 50 साल पुरानी घटनाओं पर विशेष सत्र बुला सकती है, तो आज के सवालों पर क्यों चुप है? यह सत्र दरअसल “राजनीतिक साजिश” का हिस्सा है, जिसका मकसद है जनता का ध्यान भटकाना।
“RSS की भूमिका पर भी उठेगा सवाल”
जयराम रमेश ने यह भी घोषणा की कि वे इस विशेष सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की भूमिका को भी उजागर करेंगे। उन्होंने कहा कि “सिर्फ कांग्रेस पर आरोप मढ़ने से हकीकत नहीं छुपेगी, हमें यह भी बताना होगा कि इमरजेंसी के दौर में संघ की क्या भूमिका थी, और क्या वह लोकतंत्र के साथ खड़ा था या नहीं।”
“पहलगाम हमले पर क्यों खामोश है सरकार?”
जयराम रमेश ने हाल ही में 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 पर्यटक मारे गए थे, को लेकर भी सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि इस हमले में शामिल आतंकवादी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं, लेकिन सरकार सिर्फ कांग्रेस पर हमला करने में व्यस्त है।
उन्होंने तीखे व्यंग्य में कहा,
“हैरानी की बात है — हमारे सांसद भी घूम रहे हैं, और आतंकवादी भी। मिसाइलें आतंकवादियों पर चलनी चाहिए थीं, लेकिन ये तो कांग्रेस पर छोड़ी जा रही हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को चाहिए था कि वह पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए, लेकिन वह सिर्फ राजनीतिक स्टंट कर रही है।
“इमरजेंसी की आड़ में असल मुद्दों से भागना”
रमेश ने सवाल उठाया कि अगर सरकार वास्तव में लोकतंत्र की चिंता करती है, तो मौजूदा दौर में मीडिया पर अंकुश, विपक्ष की आवाज़ को दबाना, और एजेंसियों के दुरुपयोग पर वह क्या कहेगी?
उन्होंने इमरजेंसी के दौर की तुलना आज की स्थिति से करते हुए कहा कि “आज जो हो रहा है, वो असली इमरजेंसी है — बिना घोषणा के, लेकिन पूरी तरह लागू।”
निष्कर्ष: मुद्दों से बचने की सस्ती कोशिश?
जयराम रमेश का यह बयान स्पष्ट रूप से मोदी सरकार की रणनीति पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। क्या वास्तव में सरकार इमरजेंसी की वर्षगांठ मनाकर लोकतंत्र का सम्मान कर रही है, या फिर यह एक राजनीतिक हथकंडा है, ताकि वह अपनी विफलताओं से बच सके?
पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए निर्दोष पर्यटकों की मौत और दोषियों की गिरफ्तारी अब भी अधूरी है। लेकिन संसद में बहस होगी 50 साल पुरानी इमरजेंसी पर।
ऐसे में विपक्ष का यह कहना वाजिब लगता है:
“आज के सवालों से बचने के लिए इतिहास का सहारा लिया जा रहा है।”
